सोहं - चमत्कार | Soham - Chamatkar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.15 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दोनो सुघरये । इनिहास इस वातका साक्षों है कि मालाका
प्रभाव नलवारसे अधिक होता है । आज भीष्म, कण, दुर्योधन,
दोणाया पं-युधिष्टियदिका किसोपर कुछ प्रभाव नही है परन्तु
वार्मीकि, व्यास, वशिछ्ठ झादि महदर्पियोको घाकसे ब्याज भी दम
मद्य-मांस-व्यभिचार श्यादि झखंख्य घुराइयोसे बचे झुए है ।
ससारका उपकार करना चाहते हो तो पहले झपने श्ाप-
को ख़ुघारो । स्वा० विवेकानन्द्का कहना हैं कि संसारका
स्वभाव कुत्तेको प्रंढुकासा है। छुत्तकों पूँ छुको वारदद बरसतक भौग-
लीमे सीों चन्द करके रख दो--पर जव निकाज्ञो तब टेढ़ी ही
रहेगी । ससारका भी यही स्वभाव है। ईश्वर्को छपा से
समय समयपर ऐसे महापुरूप उत्पन्न होते हैं जो उनके समय-
में भाड़ घुद्दारकर ससारसे कूडा कचरा साफ़ कर जाते है।
परशुराम, रांम; रृप्ण झादि सबने पेसा हो किया। पर देखो,
बाज संसार किस दशा में है ? कुत्तको पूछ जो टेढ़ी थी चहद
टेढ़ी दी है। इसलिये संसारको खुधारनेकी फ़िक्र छोड़कर
तुम अपने झापकों खुधारनेकीः फिक्र करो । झंगर हरे एक
मजुप्य श्रपने झापकों सुधार ले तो ससार आापद्दो खुघरः
जायगा । व
जो लोग झापने श्ञापको बिना खुधारे दूखरोको खुघारनेका
दावा करते है वे दंभी हैं, पाखंडी हैं। सच्चे खुघारक पहले
घ्याप झपनेकों रुधारते है ।
एक समय स्त्रा० सुरेश्चराचार्यने स्वा० शकराचायंसे कहा
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