सोहं - चमत्कार | Soham - Chamatkar

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Soham - Chamatkar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की शिया >च के थ् ब्न्न दोनो सुघरये । इनिहास इस वातका साक्षों है कि मालाका प्रभाव नलवारसे अधिक होता है । आज भीष्म, कण, दुर्योधन, दोणाया पं-युधिष्टियदिका किसोपर कुछ प्रभाव नही है परन्तु वार्मीकि, व्यास, वशिछ्ठ झादि महदर्पियोको घाकसे ब्याज भी दम मद्य-मांस-व्यभिचार श्यादि झखंख्य घुराइयोसे बचे झुए है । ससारका उपकार करना चाहते हो तो पहले झपने श्ाप- को ख़ुघारो । स्वा० विवेकानन्द्का कहना हैं कि संसारका स्वभाव कुत्तेको प्रंढुकासा है। छुत्तकों पूँ छुको वारदद बरसतक भौग- लीमे सीों चन्द करके रख दो--पर जव निकाज्ञो तब टेढ़ी ही रहेगी । ससारका भी यही स्वभाव है। ईश्वर्को छपा से समय समयपर ऐसे महापुरूप उत्पन्न होते हैं जो उनके समय- में भाड़ घुद्दारकर ससारसे कूडा कचरा साफ़ कर जाते है। परशुराम, रांम; रृप्ण झादि सबने पेसा हो किया। पर देखो, बाज संसार किस दशा में है ? कुत्तको पूछ जो टेढ़ी थी चहद टेढ़ी दी है। इसलिये संसारको खुधारनेकी फ़िक्र छोड़कर तुम अपने झापकों खुधारनेकीः फिक्र करो । झंगर हरे एक मजुप्य श्रपने झापकों सुधार ले तो ससार आापद्दो खुघरः जायगा । व जो लोग झापने श्ञापको बिना खुधारे दूखरोको खुघारनेका दावा करते है वे दंभी हैं, पाखंडी हैं। सच्चे खुघारक पहले घ्याप झपनेकों रुधारते है । एक समय स्त्रा० सुरेश्चराचार्यने स्वा० शकराचायंसे कहा




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