कटारमल का सूर्य मंदिर | Kataarmal Ka Surya Mandir

Kataarmal Ka Surya Mandir by डॉ करुणा शंकर दुबे - Dr Karuna Shankar Dubey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ करुणा शंकर दुबे - Dr Karuna Shankar Dubey

नाम - डॉ0 करुणा शंकर दुबे
वर्तमान पद - सहायक निदेशक,आकाशवाणी,भारतीय प्रसारण सेवा (कार्यक्रम)एवं केन्द्राध्यक्ष आकाशवाणी ,अल्मोड़ा।
पिता का नाम - स्व0 पं0 कीर्ति शंकर दुबे
माता का नाम - स्व0 शशि प्रभा दुबे
पत्नी–श्रीमती गीता दुबे
जन्म
|
- 14 जून 1958
शिक्षा
- प्रारम्भिक शिक्षा -नगर पालिका प्राथमिक विद्यालय, पक्की
बाजार(अर्दली बाजार) वाराणसी ।
उच्च शिक्षा –काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
- एम0 ए0 संस्कृत कला संकाय (काoहि0वि0वि0) - पी0 एच0 डी0, कला संकाय (काOहि0वि0वि0) - आचार्य पालि ,सम्पूर्णानन्दन संस्कृत विश्वविद्यालयऔर बौद्ध शब्द कोष का अध्ययन कार्य हेतु।
भूमण्डल(वाराणसी) - पाक्षिक हिन्दी के

Read More About Dr Karuna Shankar Dubey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
देव भूमि उत्तराखण्ड का अपना महत्व है। अध्यात्म की विलक्षण परम्पराओं को सहेजने के साथ ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन को नये आयाम देने में हिमालय ही नित नूतन रहा है, इसके वास्तविक स्वरूप को समझते ही प्राणी का स्वयं को प्रकृति से जुडाव आवश्यक है। यहाँ के कत्यूर -चंद राजवंश की श्रृंखला धर्म प्रिय रही है, तथा प्रत्येक ने अपनी - अपनी शिल्प कला की छाप भी रख छोड़ी हैं और उस शिल्प का अपना जन–जुड़ाव भी है। इसके पीछे कोई न कोई रहस्य अवश्य छिपा हुआ होता है। अपने धर्म, आस्था, पूजा और अर्चना को मूर्तरूप देने के लिए प्रतीक मन्त्र और गाथा है जो सम्पूर्ण भारतीयता को अतीतकाल से वर्तमान तक को समृद्ध बनाये हुए हैं। चाहे कर्मकाण्ड के बहाने से जोड़ते रहे हो या दुःख से मुक्ति पाने के अन्य मार्ग में समाधान के स्रोत के रूप में उपलब्ध होते रहे हैं। यह विवेचन प्रतीक रूप नहीं है मनुष्यता को जीवंत रखने का सहज माध्यम हैं किसी भी शुभ अवसर पर या किसी भी मंगल कार्य पर परिवार के लोग इन साहित्यों के मर्म का मरण अवश्य कर लेते हैं, मानो अपनी समृद्ध परम्परा को सजीव और साकार कर रहे हों। यद्यपि समय के साथ धर्म और साहित्य के विषय को अन् जाने वार जानने । प्रवृत्ति घटती जा रही है फिर भी हमें अपनी मूल संस्कृति से जुड़े रहना हैं । यही भारतीय होने का धर्म है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने अस्तित्व को बनाये रख सकते हैं। साहित्य का अध्ययन न केवल ज्ञान वृद्धि के लिए संतुलित आहार है अपितु समृद्ध अतीत, वर्तमान और भविष्| को सार्थक करने का सर्वोतम साधन भी हैं। अतीतकाल से सूर्य देव प्रकृति-देव आराधना के लिए पूजनीय रहे , उनके लिए सब कुछ मनुष्य कर लेता था। वर्तमान को अवगत कराना ही इस सचित्र पुस्तक का लक्ष्य है। शहरी जीवन में पले लोग अपनी संस्कृति को जान सकेंगे कि हमारा अतीत कहाँ है और हम कहाँ हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन का श्रेय परम आदरणीय मित्र श्री नरेश सिंह चौहान,आकाशवाणी अल्मोड़ा जी को जाता है जिन्होंने मुझे कई बार इस पुस्तक के लेखन कार्य हेतु प्रेरित किया उनकी प्रेरणा का परिणाम है कि यह पुस्तक आपके सम्मुख प्ररतुत करने मे में सक्षम हो पा रहा हूँ, मैं हृदय से उनका आभारी हैं। साथ ही मै आभारी हूँ अपनी धर्मपत्नी की विदुषी डॉ0 गीता दुबे का जिन्होंने सदैव उत्साहित किया पुत्री कनिष्ठा,चयनिका के हिन्दी और संस्कृत के विद्वत्तापूर्ण शब्द और सुझाव का मै कृतज्ञ हैं जिन्होंने अपने अमूल्य समय में से मुझको गति प्रदान की। अन्त में , प्रकाशक महोदय के बिना यह कार्य सम्भव नहीं था अतः उनका भी आभारी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now