ब्रम्चाराया और आत्मा समय | Brahmacharya Aur Aatma Samaye

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Brahmacharya Aur Aatma Samaye by श्री जवाहर विद्यापीठ

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९१३ 1] सचसुच यदद स्थिति हृदय को पिघला देनेवाली है। वहुतेरे लोगों की पेसी दी दशा रहती है परतु जब तक मन के भीतर इन विचारों के प्रति सम्राम ज्ञारी रदता है तब तक रूर की पोई बात नहीं है । यदि श्रॉप श्ापराधिनी दी तो उसे बद कर लेना चाहिए यदि कान श्पपराधी हों ठो उन्हें भी रूडे से बद कर देना चाहिए श्यॉँय नीचे करके चलना श्रेयस्कर होता है । _ इस प्रकार दूसरी शोर देखने फा श्रवकाश दी न मिलेगा । जहाँ _ गदी घातें दो रही हों गंदे गाने गाए जा रदे हों वहाँ से उठ कर भाग शाना चाहिए). झ्पनी रसना पर भी स्वूग झाषिकार रखना चाहिए । कर मेरा सिज्नी झलुभव तो यह है कि जो र्सना क्रो नहीं जीत सका बदद विपय पर विजय नहीं पा सकता । रसना पर विज्ञय माप्त करना घहु्त कठिन दै । परतु जय इसपर विजय मिल जाती दै तभी दूसरी विजय मिलना सभव है। रसना पर विजय प्राप्त फरने फे लिये पहला साधन तो यह है कि मसालों का पूर्ण रुप से या जितना समय हो त्याग किया जाय । दूसरा साधन इससे झधिक ज़ोग्दार है । चह्द यदद कि इस विचार की श्रृद्धि सदा की जाय कि दम रसना की तृप्ति फे लिये नददीं बरन्‌ जीवन-रष्तण के लिये झाद्दार करते हैं। हम स्थाद के लिये वायु नहीं ग्रदण फरत वरन्‌ श्वास लेने फे लिये लेते हैं । पानी हम फेवल पिपासा शात करने के लिये पीते हैं । इसी प्रकार भोजन भी फेवन भुस मिटाने के लिये दी करते हैं । मारे मात्ता-पिता बचपन से दी इसके विपगीत श्यादत डाल दते हैं । मारे पालन के लिये नहीं चरन्‌ पना प्यार प्रदर्शित करने फे लिये वे भाति भाति फे स्वाद खाकर हमें सट्ट कर डालते हैं । ऐसे वातावरण का हमें विरोध करना पड़ेगा । परण्तु पिपयासक्ति पर विजय पाने के लिये स्वरा




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