केराट मेटिरिया मेडिका संस्करण 5 | Kerat Materia Medica Sanskaran-v

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ केण्ट मेटिरिया-मेडिका सर-दर्द रक्त-सझ्ययी प्रकृतिका होता है साथ ही रक्त ऊपरकी और चढ़ता है मरापन और तनावका भाव रहता है साथ ही चेहरा लाल आाँखोंमें पूर्णवा और तनाव | गर्वनकी पूर्णता |. हस्पिण्डका धढ़कना । आाँखका ढेला वाहर निकलनेवाला घेषा दवावसे सर-दर्द घट जाता है । शिराओंको सहारा मिलनेंके लिये फेरम दवाव चाहता है। हथोड़ी मारनेकी तरह सरसें धमक । प्रत्येक वेगकी गति सर-ददंकों वढ़ा देता है। खाँसनेपर सर-दर्द बढ़ता है । खाँसनेपर पदचात्‌ मस्तक और मस्तकमें दर । धीरे- धीरे टहलनेपर दर्द कभी-कभी उपशम हो जाता है। सोढ़ी चढ़ना नीचे बैठना अपनी जगहसे उठना--जवतक की खूब मनोयोगसे नहीं होता--फेरमकी सब वीमारियोंको बढ़ा देगा। कोई भी आकस्मिक गति हथीड़ी मारनेकी तरह दर्द और माथा फ्रैलनेका भाव उतन्न कर देगी । इसके वाद छुछ-न-कुछ खोंचा मारने या फाड़नेकी तरह दर्द पैदा हो जायगा | उठनेपर या खाँसनेसे माथेके पिछले भागमें आधात क्योंकि खाँसना एक आकस्मिक गति है। हथोड़ीकों चोटकी तरह सर-दर्दके साथ चित्त-विभ्रूम ।. मानें खूनका दौरान हो जाना उत्तेजनासे रक्त-सश्चयी सर-द्द सर्दी लग जानेपर हवा लगनेपर जो तीन दिन चार दिन या एक सप्ताहतक रहता है। चेहरा तमतमाया रहता है दर शायद ठण्डा रहता है माथा कुछ गम रहता है पर उतना गर्म नहीं जितचेकी थाशा की जाती है । आँखोंमें लाली -रक्तवाहिनियाँ रक्तसे भरी बहुत कमजोरी इवास-कष्ट और कलेजा घड़कना ।. लिखना एक मानसिक काय है-इतसे टुवारा सर-दर्व पैदा हो जाता है | मस्तक त्वचामें अनुुभवाधिकय । रोगीको अपने केश लटकायवे रखने पढ़ते हैं। रक्त- लावके साथ या वाद अथवा सूतिका-ग्रहकी खियोंको मानसिक विश्रज्नलता और सर-दर्द । आँखोंके चारों ओर फला-फुला |. रक्तस्वयके कारण सब तरहका दृ्टि-विभ्रम शिराओंका रुकना पलकॉका फ़रूलना पीघकी तरह ल्ाव थावाजका वहुत ल्यादा अनुभव होना कानमें वाजा वजनेकी थावाज । . नाकके लक्षण भी बहुत ज्यादा हैं । सर्दी थौर इललेप्मिक-झ्विल्लीके प्रदाहके उपसर्ग जिनका अन्त नाकसे रक्त-साव होकर होता है। जरा भी उत्तेजना मिलनेपर नाकसे रक्त- साव होता है साथ ही ऋतु-ख्ावके समय सर-दर्द नांकसे पपड़ी निकलना चेहरेका बहुत ज़्यादा पीलापन थोड़े भी भावोद्रेकपर चेहरा लाल तथा तमतमाया हो जाता है । निश्न अड्ठीके शोथके साथ तमतमाया चेहरा । शीतके साथ तमतमाया चेहरा । शीघ्षके साथ प्यास फेरमका एक आशइचर्जजनक स्रूप है । मासिक अऋतु-लावके समय प्रचण्ड दर होता है और ज्योही दर्द आरम्भ होता है लोही चेहरा तमतमा छठवा है । पाकाशय्में जो कुछ जाता है वह नहीं पचता थर इतनेपर भी खास मिचली नहीं रहती । फेरममें मिचली प्राप्त होना तो एक अपवाद है । खाद्य पाकाशयमें जाता है तथा वगेर मिचलीके ही निकल आता है--केवल खाली कर देता है । कभी-कभी सुँहमें अन्न भर आनेके साथ फास्फोरसकी तरह डकार आती है । सुँहभर अन्न झाकर पेट खाली हो जानेकी प्रराने चिकित्सकॉको फास्फोरस ही दवा थी । राक्षसी भुख। पाव्य-भ्रन्थमें लिखा है--




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