नराला रचनावली | Nirala Rachnawali

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Nirala  Rachnawali by नंदकिशोर नवल - Nandkishor Naval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आराधना 1953 ई. के अन्त में साहित्यकार संसद दे थ क्योकि इसमें श्रीमती महादेवी वर्णलिखित जो छोटी. ताग से प्रकादित हुई थी यह निधि अकित है कातिकी पुर्णिमा से 2010 (क . सैमिका है उसके सीचे सस्करण हिंदी प्रचारक पुस्तकालय पो. बाक्स हूं. न । गीत-गुंज का सम 1954 ई. (संबत्‌ 2011 वि.) के अन्त में [क्योलि इस निवाणी बनारस से रथ रूप तुम्हारा 24- -54 की रचना है (दे. दिल्ली डे अन्तिम गीत रूगब के इसका द्वितीय किचितू पर्विधित सस्करण 1959 री संस्करण) 1 निकला था। वहीं में निकला । सार्ध्य काकली का प्रक दान जनक (सबतु 2016 चि.) में जीरो रोड इलाहाबाद-3 पे निराला के मरणोपरास्त 2.1 9 9 में वसुमती 38 अर्चना मे अधिकादा गीतों के नीचे निराला ने ४- कल झा | चलना है उसका पहुला गीत 12 जनवरी 1950 कप नितिधि दो है । उसमें पता 15 अगस्त [950 को । 17 फरवरी 1950 लक गया मौर अन्तिम गीत अबाध गति से चलता है । उसके बाद करीब छः महीज्न तो की रचना कायम पड़ता है। निराला पुन 14 अगस्त 1950 को कल .. हि अन्तराल दिखलायी 1950 तक पाँच गीत रच डालते है। अचंत्ता का + ...ति है और 15 अगश्न की रचना है । यह बीत [16 अक्तूबर 1949 के हे कि अन्तिम गीत 1949 दूं प्रकाशित हुआ था । उसके पहले जी कई गीत संकसित हो (साप्ताहिक प्रयाग ) मं (1950 ई.) तो दिया गया है लेकिन कोई निश्चित २ उनके नीचे प्रकासन-सर् मे प्रक सान के आधार पर अनुमान है कि ये गीत पु लिथ्चि नहीं । पंच-पश्चिकाओं रघना नहीं बल्कि उसके पहले की रचना हैं । इन जेंगेस्न 1950 के वाद वी लेकर अगस्त 1950 के वीच रचित होने की सम्भाधज्ञ के फरवरी 1950 से मुसका दी गीत अचंना के अन्तिम गीतों में से है. | किरणों की परियाँ अकित है लेकिन यह 15 अगस्त 1950 के पहले ही ८ के नीचे केवल 1950 के अंक में प्रकाशित हो चुका था । सेंगमरक [३ जूस 1950 आराधना में भी निराला ने गीतीं के नीचे रे दि अदुद्धियाँ भी है और क्चेंना की तुलना में अधिक फमड ैं दी है लेकिन उसमें ठीक करने और गीतों को क्रमबद्ध करने के बाद यह तो भी । मशुद्धियों वी जनवरी 1951 से लेकर 24 फरवरी 1953 तक. पंत चलना है कि सम लित हैं । आराधना के गीतों की रचना का मबाध _ से सिराला के सीन सका वुरू होता है। 1950 में 15 अथस्त के बाद निर कर में 24 अगस्त 1957 थे उन्होंने थोडे-से गीत लिखे जो असकलित रहे या भार पे हो गये। 1951 ई. में कर दिये गये । 19 52 में वे 24 अगस्त के पहले तक फू के सन्त में संक्रालिन दो गीत अर्चना-काल के भी है। इसके अलावा उसमे रे चुप रहे । लाराधमा में 1938 ई. की रचना है जिसके नीचे न जाने केसे तु एक केबिता (संख्या 89 क गयी है। यह रचना सरस्वती के नवस्वर 1961 के 1950 की तिथि गड़ लिपि मे और उन्ही हारा की गयी रचना-सिधि के झिक मे निराला को छुरुपू- गीत-गुंज के प्रथम संस्करण में कुल छब्बीस गीत से हर शित हो चुकी है । पुराने थे एक अचेत्ता से लिया गया और छः आराधना ते थे जिसमे से थे शल गीत पुराने गीत निकल दिये गये और कुछ पुरानी मौस्ि से । उसके दूसरे संस्करण में भलावा पन्द्रह नये गीत जोड़ दिये गये । एक गीत कै और अनूदित कब्रिताओं न देसमें टरूसरे भरण के 14 / निराला रचनावली 2 सम दल सर




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