सनातन धर्म मार्तण्ड | Sanatan Dharmm Martand
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.67 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर मनातनघममातथ्ड। कर श्भु
शिप्य का घन इर लेते हैं और उस को सदुपदेश नहीं करते वेद
चिरुट्ठ मत में डाठ देव हैं तन मन धन अप्पंण करने का संक्र- '
रुप करा -ठेते हैं और जप का संकट्प कराय घन ठ लते उर
जप .नहीं करत हैं यह उन की बड़ी चोरी है और क्षत्री छोग
था जमीदार कपटठ से एथ्वी छीन लेते हैं और जबरदस्ती पराथा
घन ले ठते हैं और ठठ॒ करते हैं उसके पति से छठ करके पर-
स्त्री गमन करने हैं यह चोरी है और वैश्य लोग वाणिज्य में
'घाठ तीौलते तञोर नफा टहरने में भी खरीदने बेचने में चोठी
रखते हैं किसी ,का घन जमा होय उस के देने में इनकार क-
रते हैं यह भी चोरी है शूद छोग नौकरी करके सिंबाय नी क-_
री के रवामी का धन हरलेते यह जी चोरी है और रिसवत
खेते यह महा चोरी है अपन थोड़े लास के लिये स्वामी की
घड़ी हानि करते हैं यह भी चोरी है जो चोरी से 'घन उपाजन
किया जाता और उस से कोई इष्टा पूत्त चम्मं अपाद् इए यज्ञ
बह असि,होचादि ऊम्वमेघ पप्यत, पूत्त अर्थात् कूप त्ताडाग
झाराम पाठशाला घम्मंशादा देवाठउय आदि किया जाता वह
समस्त निष्फल होता है और वह करने_वाला केवल नरक
कागी दुःख भागी होता: है और जो. मनुष्य- न्याय से थोडा
मी घन प्राप्त करके श्यट्टा से इा पूत्त- दान घम्मादि. करते हैं
उनको बढ़ा पण्य फछ होता है..यह मनुजी ने लिखा है,अ०
स्लो० पुर ॥ ० [ना
श्ाहुयेष्टं च पूर्त' च नित्यं कुय्यादितंद्वितः;। » >- . - ,
श्रट्टाकृते हाझषयते झवतः स्घागतेद्वनः ॥ २9 ॥
जो मनप्य न्पायाज्जिंत घन से शद्टायुक्त इ्टा पूत् दान
घर्म्म करते हैं आाठस्य छोड़ कर ती- ने इष्टा.पू मनुष्य को
अक्षय, मोझ फल ग्राप्त.करते हैं २३ अब, इस समय म पाख-
डी छोगों ने बहत से नये ग्रन्थ रचे हैं उनमे वेद रुदति के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...