प्रार्थना और ध्यान | Prarthana Aur Dhyan

Book Image : प्रार्थना और ध्यान  - Prarthana Aur Dhyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीमाताजी - Shrimataji

Add Infomation AboutShrimataji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्दद प्रार्थना भेदभावके तु हो वन जाऊंगी। और में बिना किसी प्रकारकी अधीरताके उस शुभ घड़ीकी प्रतीक्षा करती हूं तथा अबाध रूपसे अपने-आपको उसकी ओर प्रवाहित होने देती हूं जैसे कोई शांत जलधारा असीम समुद्रकी ओर बढ़ती हो। तेरी शांति मेरे अंदर वर्तमान हैं और उस छांतिमें में शाइनत- की स्पिरताके साथ केवल तुझे ही सब घस्तुओंमें उपस्थित देखती हूं। थ्छछ १० दिसंबर १९१२ हे परम स्वामी सनातन गुरु तेरे पथप्रदर्कनमें पुर्ण विश्वास होनेकी अद्वितीय सफलताका पुष्टिप्रद अनुभव फिर मुझे मिला। कल मेरे मुखसे तेरा प्रकादा--मेरे अंदर बिना किसी प्रतिरोघके-- व्यवत हुआ यह यंत्र अनुगत न्मनीय तथा तीक्ष्ण था। सब चस्तुओंमें सब प्राणियोंमें कर्ता तु ही है. और जो तेरे इतना समीप हैं कि वह सब क्रियाओंमें बिना भपवादके तुझे देख सकता है बहू प्रत्येक कमेंको आशीर्वादमें बदलना जानता है । सदा तुझमें हो निवास करना बस यही महत्त्वपूर्ण है तुझमें ही सदा और उत्तरोत्तर अधिकाधिक मानसिक असों और इंद्रिय- जन्य मायाजालसे बाहर परंतु कमेंसि विरक्‍्त होकर नहीं उनसे मुंह मोड़कर तया उन्हें त्यागकर नहीं--यह संघर्ष तो व्यर्थ तथा हानिकारक हे--वट्कि हर कर्म जो भी हो वह सदा-सर्वदा तुझमें ही निवास करते हुए करना। तब श्रम दूर हो जाते हैं इंद्रिंय- जन्य मायाजाल खंडित हो जाते हैं कर्मचंधन टूट जाते हैं और




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now