ज्वर मीमांसा | Jvar Mimanasa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jvar Mimanasa  by हरिशरणनन्द - Harisharan Nand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिशरणनन्द - Harisharan Nand

Add Infomation AboutHarisharan Nand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उत्ताप चुद्धिका कारण ट् उत्तापकों नियन्त्रणमें रखनेके लिये नियन्त्रक केन्द्र द्वारा यह व्यापार सदा चढता रहता है । उत्तापदद्धिका कारण शरीरमें इतना प्रबन्ध होने पर , भी अनेक बार देखा जाता है कि अधिक गर्मीके दिनोंमें बहुतसे आदमी टू ऊगकर मर जाते हैं । सर्दीके दिनोंमें बहुत आदमी ठिटर कर प्राण गँवा देते हैं । कई व्यक्ति सोचेंगे कि ऐसा क्यों होता है? इसको भी अच्छी तरह समभका जा चुका है । जब मनुष्य चिन्ताप्रस्त हो रहा दो या अत्यन्त क्रद्ध हो उस स्थितिमें उसे कोई काम करनेके छिये कहा जाय तो ग्राय: देखा जाता है कि उसकी मति ठीक न रहदनेके कारण उस कामको वह व्यवस्थित नहीं कर सकता । कई बार कुछका छुछ कर बैठता है। ठीक यही दशा उस समय मस्तिष्ककी भी हो जाती है जब कोई शीत, उष्ण या विषादि प्रभावकारी कारण सस्तिष्कको प्रभावित करें ।' उस समय मस्तिष्कके कार्यकर्ता उस प्रभावसे विचढछित हो उठते हैं, और इसी कारण शरीर की ऐच्छिक, अनैच्छिक क्रियाओं में अव्यवस्था व व्याघात उत्पन्न हो जाता है। उस समय चत्ताए नियन्त्रक केन्द्र शरीरके उत्तापकी व्यवस्थाको सँभाठ नहीं सकता । इसीसे एकाएक चत्ताप घट या बढ़ जाता है भर अनैच्छिक गतियोंमें अवसाद हो तो सृद्यु तक हो जाती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now