यक्ष्मा उसके कारण और निवारण | Yaksma Uskai Karn Aur Nivaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तप निकेदना हिस्डी में यध्मा रोग पर बहुत ही कम पुस्तक देखने में आती हैं। वीसवीं सदी फे उत्तराद्ध से यद रोग इतने अधिक परिमाण में फेल गया है कि भारतवरप में शायदद्दी कोई ऐसा पुण्यशाली घर होगा जो इसके शिकार होने से बचा हो । भारतवर्प में घर २ में क्षय-रोगी देखने में आते हूँं। इस रोग के चंगुल में फंस कर असं्य्य युव- तियों और युवक स्ृत्यु की चलिवेदी पर बलिदान दो रदे है। जब रोगी अपने कानों से यदद सुन ढेता है कि उसे 'टी० ची०' अर्थात्‌ यध््मा दो गया है--'तय वह अपनी इद्द लीला की समाप्ति निकटतम समम लेता है। इस रोग की भयकरता से मानव का हृदय कॉप उठता दै-- इसके नाम श्रवण मात्र से आधी जान शरीर से निकछ जाती है। प्रति चर्ष ससार में दुस लास पंचानवे हजार, प्रति दिन तीन हजार, एवं प्रति मिनट २ मनुष्य इस यध्मा-दानव की भेंट चढ़ते हैं । इस रोग की गणना असाध्य रोगों में है। यह फेफड़ों को प्रबलता से पकड़ता दे। यह प्राय: समस्त सभ्य देशों में पाया जाता है। परन्तु विदेशों के निवा- सियों ने रोग निवारण के श्रेप्ठ उपायों तथा विचार्युफ्त




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