वेदान्त-धर्म | Vedant Dharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। ३ ) यहां स्वभावत: यह प्रश्न उठता है कि श्रात्मा क्या है 1 आत्मा को जाने विना हमारे शाख्ों में कहे हुए ईश्वर को भी नहीं जाना जा सकता | भारत और भारत के अतिरिक्त झन्य देशों में वाह प्रकृति की आाज्लोचना द्वारा इस सर्वेकालीन सत्ता के आभास की चेप्रा की गई है। में जानता आत्म तल... हूँ, इसका परिणाम भी अत्यन्त शोचनीय हुआ है । झतीत सत्ता का आभास होना तो दूर रहा, हम लोग जिनन ही जड़ जगत की छालोचना करते हैं, उनने ही जड़वादी होते जाते हैं। श्रगर हम लोगों में थोड़ा वहुत पहले धर्म भाव रहता भी है, नो वह भी जड़ गत की आलोचना करते करते दूर दोजाता है। इसलिये द्ाध्यात्मिकता शरीर उस परम पुरुप का शान 'बाह्म जगत द्वारा नहीं हो सकता | उसकी खोजवीन हृदय में, आत्मा में करनी होगी । वाद्य जगत दम लोगों को उस झनत्त के सम्बंध में कोई सन्देश नददीं दे सकता । जस्तजंगत में अन्वेषण करने से दो उसका सम्वाद पाया जा सकता है । इसलिये केवल श्ात्म तत्व के झन्वेपण से दी, ात्म तत्व के विश्लेषण से ही, परमात्मा का ज्ञान संभव हो सकता है । जोवात्मा के स्त्रूप के सम्बंध में भारत के भिन्न भिन्न सम्प्रदायवाल्षों से मतसेद भले हो है, किन्तु कई एक विपयों में सभी एकसत मी हैं । .जैसे-जीवात्मा श्नादि, अनन्त है, वह स्वरूपत: 'विनाशी है । दूसरा यदद कि प्रत्येक झात्मा में सब प्रकार की शक्ति, छाननंदू, पवित्रवा सर्वव्यापकता और सर्चश्ठा




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