विद्रोही | Vidrohi

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Vidrohi by रईस अहमद जाफ़री - Reis Ahamad Jafari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ दुसरे दिन सुबह नाइता श्रादि से फ़ारिग़ होकर शाकिर बाहर जाने के इरादे थे श्रचकन पहुन रहा था कि मनसुर पहुँचा । शाकिर मे श्रचकन के बढन लगाते-लगाते बड़े स्नेह-भाव से पूछा-- कुछ काम है ? जी हीं 112 कहो मैं दादी करना चाहता हूँ । (इस बेवाकी पर श्राइचर्य-चकित होकर) श्रवहंय करो परन्तु बिना श्रापके सहयोग के यह सम्भव नहीं । प(शौर हैरान होकर) मेरा सहयोग ? तुम समभते हो मैं कोई सकावठ डालूंगा तुम्हारी दादी में ? मुख कहीं के नहीं यह बात तो नहीं है । फिर क्या बात है 7 जब तक श्राप रजिया को तलाक़ न दे दें मेरी शादी होगी कंसे ? (मुख लाल हो गया म्राँखों से श्रगारे बरसने लगे) बया कहा तू ने ? _ ाप रजिया को तलाक दे दीजिए 41] पं भाव ३. माप उससे प्रेम नहीं करते । प्रापके लिए वह बेकार है जम उससे प्रेम करता हूँ मेरे लिए बहू काम की है ।




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