शारीर बल विद्या [भाग-1] | Sharir Bal Vidhya [Bhag-1]

Sharir Bal Vidhya [Bhag-1] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डर कक मु हि जायें एडियोंनें ठगनावें इस मकार करके नीचे बैठ भावे, फिर दोमों हायोंको सामने धरके सब शारीरके गेसको हाथ तथा पा्ोकी अंगुष्ियोपर सम्हारकर घुटनों गौर शरीरको अशिथिछ (कड़ा ) करके साहनेकी ओर झुक चावे. परंतु नाक जमीनमें न लगने पावे, फिर दाहिने हाथमें सैंडियामिद्ी छेगे और मितनी छंबरी कोर सैंची जाते उतनी रंगी ठकीर सडियामिट्ओोसे सैंच देर. इस कामें कोई छा साथी मिठ जाय है बहुतही अच्छी बात है, क्योंकि पसरका इंपीसे छकीर बहुत दूरतक सलैंचनेका अभ्यास रेतहि, उनेके समयों फोरन कूदकर उठ नाते ओर उसतेही दोनों हाथेति ताढ़ी बनाये. ऐसा कहते हैं कि इस कप्तरतते रेरीरकी ३६० मोंको चरानर चढ़ने पहुँचता, है. प्रयोग भठारंहवां--पांवोंको नोडकर तथा हा्थोंको गंत्रंके उमीरे जुए भार्गोपर धरके सीधा खड़ा रहे, फिर गेपीनते ऊपर कूदकर दोनों पावोजो अठ्ग ९ करे और गन सेद रहनेके पहलेही पुन; पूर्वित्‌ पावोंको मिछाकर नेग रहे, फिर बीच २ में दाहिनी यंगको बायीं टॉगपर और री टंगको दाहिने टगपर धरता ना, पांवॉंकी रंगुद्टियां सैर थामने सामने “हें, परंतु वे परसपरकों छगने न देवें, । गाक़ति १४ बी देखो, डे ्‌ मधोग उन्नीपततों-दोनों हावेंको आपने सामने धरके परे बीचका जंगुलियोंकों फ्रपरें लगाकर उसमेंत्ते सम मारे, पंच घुलने और गोढी हाथोंमें नहीं उगने पाप; थे स्यामा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now