धम्मपद | Dhammapad

Dhammapad by अवध किशोर नारायण - Avadh Kishor Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर घग्मपद जैसे बुरी तरह छाये घर में वरष्टि फा जल पैठ जाता है उसी प्रकार ध्यानाभ्यास से रहित चित्त में राग पेठ जाता हे । १ ४-यथागार॑ सुच्छन्न॑ वुट्ठी न समतिविज्कति । एवं सुभावित॑ चित्त रागो न समतिदिज्कति ॥१४॥। ( यथागार॑ सुच्छननं वृष्टिन समतिविध्यति । पच॑ सुभावितं चित्त रागो न समतिविध्यति ॥१४॥ ) जैसे अच्छी तरह छाये घर में वृष्टि का जल नहीं पैठ पाता उसी प्रकार ध्यानाभ्यास से अभ्यस्त चित्त में राग नहीं पेैठ पाता । राजगूद्द ( वेणुवन ) चुन्द ( सूकरिक ) प-इध सोचति पेन सोचति पापकारो.. उभयत्थ सोचति | सो. सोचति सो. विहन्ञति दिस्वा कम्मकिलिट्रमत्ततो ॥ १४ ॥ ( इह शोचति प्रेत्य शोचति पापकारी उभयत्र शोचति । स शोचति स बिहन्यते दृष्ठवा कम क्लिप्टमात्मन ॥२४॥ )) इस लोक में शोक करता हे श्रौीर परलोक में जा कर भी पापी दोनों जगह शोक करता हे । वह शोक करता हें परेशान होता हे श्रपने मेले कर्मों को देख कर । श्रावस्ती ( जेतवन ) घर्मिक ( उपासक ) १६-दध. मोदति पेच्च मोदति कतपुब्ञो यत्थ उभ मोदति ।.




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