भारतीय दर्शन की समस्यायें | Bhartiya Darshan Ki Samasya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.72 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयदेव वेदालंकार - Jaidev Vedalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज]
उनके श्रालोच्य ग्रन्थ का शीष॑क है”'शारतीय ददन वी समस्यायें :
एक समालोचनात्सक श्रध्ययन । इसग्रन्थ में कुल बारह न्रध्याय हैं,प्ौर
प्रत्येक भ्रध्याय का एक सुनिश्चित दार्शनिक विषय है । यह विषया-
वली ज्ञावमीमांसा से श्रारम्भ होकर मोक्ष-मीमांसा पर समाप्त होती
है। बीच में तत्व-मीसांसा, श्रात्म-निरूपस सुष्टि-रचना, अते:करण
ख्यातिचाद, श्राचार-मिरूपण, प्रामाण्यवाद और कमेंफलनिरूपण
जेंखे विषयों की विवेचना हुई है ।
इन विषयों का गठन बड़ी योग्यता से किया. गया है। इन
के प्रतिपादन में कहीं दुरूहता श्रथवा झस्पष्टता लक्षित नहीं होती ।
भाषा मंजी हुई है। समस्यायें प्रामाणिक ढंग से उठाई गयी हैं ।
प्रत्येक विषय के विवेचन में भारतीय दशेन की कोई शाखा
प्रतिनिधित्व से वाब्चित नहीं की गयी है ।
यहू सब होते हुए भी ग्रन्थ प्रकीस विषयों श्रथवा मतों का
सझग्रहू मात्र नहीं हैं, जैसा श्रन्थतर प्राय: देखने में ्राता हैं । लेखक
का अपना एक सुनिश्चित, सुचिन्तित रुष्टिकीण है जो ग्रन्थ में
साद्यन्त प्रशिफलित पाया जाता है । मैं समझता हूं कि यह इस ग्रस्थ
को प्रमुख विशेषता है ।
हू कौन सा दृष्टिकोण है जो पूरो रचना को अनुप्राणित
कर रहा है? इस का किब्न्वित विचार आवश्यक प्रतोत होती है ।
भारत में झनेक दाशषंति क सतवाद श्रत्य बढ़े, और बूढ़े हुए ।
आधुनिक युग में उन सब पर कारें किया. गया, सब पर साहित्य
तयार किया गया, किन्तु भारतीय दासेनिकों को. गृहीत प्राय: एक
ही देन हु, जिसे वेदान्त कश्ते हूँ । भ्ौर बेदान्त की भी केवल
एक शाखा का सर्वाधिक प्रचार हुआ, जिसे अददेतवाद कहते हैं श्रौर
जि आचार्य दाद्ुर हो गये हैं । विवेकञानन्द, रामतीथं,
(» छष्णचन्द्र भट्टाचायं ने कुल मिला कर शख्ूर
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