आधुनिक हिंदी कथा साहित्य और मनोविज्ञान | Aadhunik Hindi Katha Sahitya Aur Manovigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ाससख धिनिक कयान्साहिसव पी प्रमूत्ति का यनोिज्ञान से सेल नामुसिक हिन्दी कथा दिये पथ्मारण की हाथ से इतना वाल दे कि तसफ मव्येक परलू . ग्रत्यक शरग तथा मस्येक सदा के पिश्लिश तथा ्पादीकरण के लिये शधिक समय परिश्रम लभा सामूहिक एवं सुल्गदित प्रय स सर वश्यूफता है | एफक पवलू की मी थराड़े तथा. उसके डितार के सम्यक प्यास के लिय स्थान समग्र सर प्रयत्न की विशालता रूम झपिदरखि नहीं हे परसतु यदि छल शम्दावली से एक शाद्द के लावब का भी पुगसमोत्सव की सर्द सानसे याद सून पद्ति से एस खद्ध गाली के कवानीस्प की प्रगति की सवा कटी जाय तो तड़ दौरा झास्तश्के शपारमत्रुति श्रयाति का रा हो समुस्य के न्यल जगत को ख्ोड़ कर उनके मसोजगते की सोर खनसग सोसा गाया है | याद शाज भी उस व्ड्ीं स्कूल ग्शय पशेष महू गया है तो इसनिगे दि उस स्थूलता मे हार दो. इस छान्तारिक जयल की नाक मिलन करी है। दी हो प्रत्यभ्र चेन में मनुष्य की प्रशत्ति स्थूल से सुदम को झोर ही जद मा घिस्थिय दरनत सक़म सस्व की बस पर विश्यास करसे से बसे शाम थोडी कॉद्िनाए मेवे दो हो केवीक दा सपा में ध्म छाज सोचने समलम के द्न्यस्त नहीं हैं पर छाइनटाइन पादि को. नवनिक शब्नती से जानुनिक सस्तिक के लिये खोचगम्स सूप में सता सिखा ४ दि सच्स जगत पा मलबे कया है है शान सवा आसन सगे थे विस कर रे ईै निदलं डाल पी नडि बुरदाकोंर द्तपनवी बा सार से पन्य पक सोच पतन रे 7 1 सन सार कवाकार का पता लव नए न्ुध सो प्राव ने. लगते सोचते ससाजगतं के यूकूम पन्य मे दी झा हा ना करती है दर नदी थे दस नदज दा या हो सकें कर ट्िसन सा अर दि ली मी. बलरीपु न पपुना चली नी इनको डरे दर दर कसा स्‍ | पए /पररनें का हाडिकोशा हुन उन्कष न यवाणदक नह िर्य का ता यह नी राई है कि आज के ससो- सबने की छाले कि हे वडदर कयानसत स्व गी नरक से सिसर्से बाले व्यक्ति को बैंसे के धशप देखने को लिलते है । हसन श्ाजनिफ कवान्िल को जिस लिशेष दष्टिकोसा से उखम सो मसाम किया है बट सातारण पाठक सा हाए्काण सही हैं पर एक तप एक का शॉट दोखि डर जो श्ास-ब्य साहिन्म मर कु विशेष स्रस्तु की द्ढ सट्टा ह् बार जड़ा उस बरतु को चांड़ों भलप उसे मिल जाती है बहाँ वह थोड़ा टर कर उस




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