संस्कृत के गान्धीचरितात्मक काव्य एक अध्ययन | Sanskrit Ke Gandhicharitatmak Kabya Ek Adhyayan

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Sanskrit Ke Gandhicharitatmak Kabya Ek Adhyayan by अवनि कान्त मिश्र - Avani Kant Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 वस्तुतः उनका उद्देश्य वास्तविकता का तकंसंगत विश्लेषण करना नहीं बल्कि उसकी उपलब्धि करना था। यद्यपि “मगवदगीता में प्रतिपादित असत्‌ से विरत रहने की नीति शास्त्रीय परिपूर्णता, मीमांसा द्वारा समर्थित सामाजिक निंयत्रण तथा शंकर द्वारा प्रचारित अभेद की भावना का सार-संकलन गान्धी-दर्शन में किया गया है” तथापि वास्तविकता के सम्बन्ध में उनकी पक्की धारणा वैष्णव धर्म ग्रन्थों के अनुरूप ही बनी थी। इस . सम्बन्ध में जो हम पहले कह आये हैं उसे स्मरण रखना चाहिए कि, “उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रन्थों को समग्र रूप से नहीं स्वीकार किया था। जो अयुक्तियुक्त एवं अनैतिक था उससे वे सदा विमुख रहे। वेद, उपनिषद्‌, गीता एवं पुराण वहीं तक उन्हें स्वीकार्य थे जहां तक वे उनके विवेक को ग्राह्म थे ।”” साथ ही वे हिन्दू धर्म को ही एकमात्र धर्म नही. मानते थे और यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं उनका कथन है -. मैं एकमात्र वेदों की दिव्यता पर विश्वास नहीं करता हैँ। मेरा विश्वास है कि बाइबिल, कुरान एवं जेन्दावेस्ता भी उतने ही ईश्वर-प्रेरित ग्रन्थ हैं जितने कि वेद“ उनके लिये “सभी धर्म एक ही लक्ष्य तक पहुंचाने वाले भिन्न-भिन्न मार्ग है ।*” उनका यह भी कहना है - सभी धर्म समान नैतिक नियमों पर आधारित है | मेरा नैतिक धर्म उन नियमों से बना है जिनसे सारे संसार के मानव आबद्ध है।' गए सत्य का स्वरूप - थे सत्य ही गान्धी जी के द्वारा यथार्थ के लक्षण के रूप में स्वीकत एवं उपलब्ध किया गया था । सत्य के द्वारा ही ईश्वर का अनुभव हो सकता है। जब कभी कोई सच्ची ... बात कही जाती है अथवा जब कोई सच्चा कार्य किया जाता है या जब कभी कोई सच्ची भावना अनुभूत होती है तब हम परमपिता परमात्मा की सत्ता का अनुभव करते हैं वह है क्योंकि सत्य है। गान्धी जी के लिये सत्य एवं ईश्वर समरूप है। ईश्वर के अन्य पहलू. . यथा सौन्दर्य एवं शिवत्व उन्हें आधारभूत लक्षण के रूप में स्वीकार नहीं होते थे किन्तु... उनके मतानुसार सौन्दर्य एवं शिवत्व सत्य से उपलक्षित होते हैं । 13 नवम्बर 1924 के यंग. इण्डिया में उन्होंने कहा था कि समस्त सच्ची कलाओं को आत्मा को अपने आन्तरिक . स्वरूप की उपलब्धि कराने में सहायक होना हि चाहिये । समस्त सत्य केवल सच्चे विचार... ही नहीं, बल्कि सच्ची मुखाकृतियां, सच्चे चित्र या गीत भी सुन्दर होते हैं । साधारण लोग... . सत्य में सौन्दर्य नहीं देख पाते। जब लोग सत्य में सौन्दर्य देखना आरम्भ करेंगे तभी .. सच्ची कला का उदय होगा। गान्धी जी के लिये सत्य ईश्वर है जो व्यवस्थित एवं. _ अर्थीन्वित समग्र है। उनका कहना है यह सत्य केवल शब्दों की सत्यता ही नहीं है. ब




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