मंगल कलश | Mangal Kalash

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Mangal Kalash by कुलदीप सिंह - Kuldeep Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ जटाजटिल जीर्णशीर्णवपु भव्य आ भारत महा वड अडोल के युगथ पाट बातो बडो | हशे थड कयु कई वडवाईओ? राफडा अघोर रव फूफव 1 विकटदष्ट्र प्राणी कई परस्पर प्रति शु हिस्र धसता ? छठी ठोकता धरा पर खरी हणाय पशु राक जीवात के पिलाय जनमे शमे थर परे थरोकार मा उधेई रचती रमे सुकल मूठजत्ठा ग्रसी । तथापि चढतो अहो कहीय थी जा उर्वी रस प्रफुल्ल करी डाठ डाठ हसतो कुपेरो परे वरेण्य सविता तणा किरण मर्ग आमन्त्रतो विहग कुल पर्ण पुज्ज महीं जे लप्या तेहने अनत नभी गुजती ऋचाथी टहौकावतो अखण्ड धृत वन्त भारत श्वसत आ शाश्वत || कविता समग्र (उमा शकर जोशी) भारत एक स्थिर भव्य जटा जाल को धारण किये जीर्ण शीर्ण शरीर वाला महान बरगद है जो समय के थपेडो के बीच सीधा खडा है | इसका तना कौन सा है ? कितनी शाखाये तनो के रूप मे है ? इसकी छाया तले दीमक पनप रहे हैं साप फूफकार रहे हैं जगली जानवरों की मारकाट पराकाष्ठा पर है । बडे जानवरों के पैरो तले छोटे जीव कुचल जाने से मिटटी मे मिल रहे है | दीमक इसकी मूल जड को चाट रही है | किन्तु फिर भी जीव रस इसकी आखिरी टहनियो तक पहुँचता है जिससे वे नई कोपलो से मुस्कराने लगती है | पेड की डालियो पर सूर्य की किरणे चिडियो को आमत्रित करती है | सत्य की अपनी ही ध्वनि से अनन्त नभ गूज उठता है | आश्वस्त जीवन्त और धैर्यवान भारत सनातन रूप से खडा है |




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