फलों की खेती और व्यवसाय | 1329 Phlo Ki Kheti Or Vyavsaya

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1329 Phlo Ki Kheti Or Vyavsaya  by डॉ नारायण दुलीचंद व्यास - Narayan Dulichand Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३ ) समयालुसार उन्हे स्थान देने की ओर ध्यान रखना चहुत ज़रूरी है। जिन कृषकों में उपरोक्त युण हों वे अपने वाहुबल तथा ईश्वर पर भरोसा करके इस पुस्तक का आद्योपान्त सनन कर काय्यारम्भ करें । फलों का चुनाव ।-- यह ज़मीन, जलवायु, फलो की मॉग और उनका मूल्य; स्थानान्तर करने के सुभीते तथा कृषक की योग्यता पर निभेर है ! जमीन और जलवायु जिन फलों को सान्य हो उन्ही की खेती करना विशेष लाभदायक होता है और उन्हें ही चुनना चाहिए । अमान्य ज्सीन या जलवायु मे या तो पौधे लगेंगे ही नहीं और यदि लगे तो फलने मे सम्देद और यदि कुछ फले भी तो फलो के आकार और स्वाद में तो अवश्य अन्तर पढ़ जायगा । उदाहरण के लिए लीजिये संतरा और सेव । सिलहट या नागपुर के आसपास की भूमि में उपजने वाले संतरे वड़े मीठे होते हे परन्तु जब उन्हें दूसरे स्थानों मे लगाते है तो ये उतने सीठे होते ही नहीं । इसी मॉति सेव के लिए बहुत ठण्डा बाता- चरण चाहिए इससे वे पहाड़ पर अच्छे होते है। इन्हे यदि मैदानों से लगाया जाय ता कभी फलेगे ही नहीं । इसलिए फलों के चुनाव में भूमि और जलवायु का विचार रखना चहुत ज़रूरी है। इनके सिवाय फलों की माँग और उनसे होने वाली आय




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