Shiitalaa by पंडित ठाकुर दत्त शर्मा - Pandit Thakur Dutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) बिष्र बायु में असर करता है और इस बायु में . जो स्वांल लेवें उस पर इस का प्रभाव पढ़ज्ञाता है विष प्रवेदा करने के पश्चात बारह दिन तक कोई _ लक्षण सिवाय. सुस्वी . या प्रतिश्याय ( जुकाम ) आदि के प्रकट नहीं होता है । १२ दिन के तर यह विष अपनी स्थिति पूणता से कर लता है और फिर णएकही बार फूटता है अधिक तो. बायु द्वारा परन्तु रागी के बिस्तर रागी की खाट रागी के बस्त्रों द्वारा मो एकसे दूसरे को लगजाती है झीतला के दानों -के भीतर का मवाद लगने से राग होजाता हद अतएव जबतक टीका शीतला का प्रचार नहीं इुआ था तो रोगी मनुष्य के शीतला के दानों का मत्राद दुसरे मनुष्यों . को लगाते थे ओर उसको नरप दीतला होकर आरोग्यता होजाती था ओर फिर नहीं निकलर्ताथी । कृष्णद्ण . मसुष्यों. पर इसका प्रभाव अधिक होता है यह रोम वढूथा बालकों को होता है । हमारा रूयाल है कि इसके यह अप नहीं कि. बढ़े. सनुष्यों को नहीं होती है बात यह है कि सब आयुभर में यह रोग प्राय णकही बार होता है इसलिए जेब बीतला रोग फेलता है तो तरुण तथा बृद्धों को तो आय वालकपन में निकल चुकी होती हैं इस वास्ते बालका पर इसका. प्रभाव हांता है। अतएव एक एस जजीरे में जहां मथम कभी बीतला या खसरा नहीं दुआ था जब पाइल पहल कहां कह रोग धीतला फली. बाल+ें-तरुणों-टद्टों सबझे हुई जिन्होंने . टीका. भादि नहीं लगवाया हे अथवा जिन को भय न. हुई हो उनको . बढ़ी आयु में मी . होसकती. है कभी कहीं बिरलेही मनुष्य. को दुसरराधार निकलती है और




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