बनेड़ा राज्य का इतिहास | Baneda Rajya Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.05 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नारायण श्यामराव चिताम्बरे - Narayan Shyamrav Chitambare
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राजाधिराजअमर सिंह - Rajadhiraj Amar Singh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे हमीरसिंह को अपने पास बुला लिया उसके वीरोचित गुणों को देखकर तथा थडे भाई का पुत्र जानकर उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया । इस पर अजयर्सिह के पुर सल्ननसिंद्ध और सेमसिंह अप्रमत होकर दक्षिण की ओर चने गये वहा उन्होंने क्षत्रियो की मर्यादा के अजनुपार कोल्हापुर साव॑त्रवाडो त॑जावर आदि के भामपास के प्रदेशों को जीता और बहा के राजा वन बैठे | आगे चलकर इसी वश मे महान शिवाजी था जम हुआ जिन््होंै अपने वाट्वल तथा बुद्धि बन से औरगजेव जैसे यलशाली सम्राट से लोहा लेकर स्वराज्य की स्थापना की तथा स्वराज्य सस्थापफ स्वघर्म संरक्षक छुत्रपति आदि पिट्द घाररिण कर सिंतारा के राज्यसिद्वासन पर मारूढ हुये । प ह राणा अजपर्सिहू के पश्चात हमीरमिह॒ सींसोदे के स्वामी हुये में वीरेंप्ट्वोने के कारण उने मन में अपनी पैतृक भूमि चित्तोड परोअपिकार करेंनें की प्रवेत लालंसा उत्पन्न हुई । उ होने मालदेव के पुत्र जेसा पर आक्रमण वर चित्तीड दुर्ग पर वि० सम्बतु १ रेपरे में फिर अधियार कर लिया । इम प्रगार केवल वीस वर्ष मुमलमानों के अधिकार मे रह कर चित्तौड दुर्ग फिर चापा रावल के वृशयर हमीरसिह के अधिरारमिं आगया । हमीरसिंहू वे समय से ही मेवाड में रावल की उपायि समाप्त होवर सणा वी पदवी प्रचलित होगई । उन्होंने रावल रत्नमिंह के समय मे अवननि परें पहुँचे हुये भेघाड की श्विपराक्रम से उन्नत किया और एक बार फिर बापा रावल के वश की नीय मेवाड में दुढ करदी । इन महाराणा की मृत्यु वि० सम्बतत् ४२१ में हुई । महाराणा नहमी रमिह _ वे उत्तराधिकारी क्षेत्रमिह भी वीर पसक्रमी तया साहमों थे उन्होंने अपने पराक्रम से मेयाइ की सीमा वी वृद्धि की और अनेकी राजाओं को जीतकर अपने आाधीन वर लिया्वह लि सम्वत् १४२१ में तिद्टास प्पर चैठे और इनरी मृत्यु विवासम्वतु १४३९ में हुई । इनमे पुत्र लकषमणसिहद जो इतिहास मे स्महायणा लाखा के नाम से चिश्यात हैं चित्तौड के स्वामी हुये । उन्होंने यवनों को पर्याप्त धन देकर याशी प्रयाग और ८ गया को यवनों मे बरो से मुक्त बर दिया । दर इनिहास प्रमिद्ध त्यागी वीर चू डा इन्दी के ज्येप्र पुत्र थे राठीड रणमल अपनी बह्धिन हँसावाई या पिवाह युवराज चू डा से वरना चाहता था जय वह नारियल सेपर महाराणा के सामो उपस्थित हुआ तब भहासाणा ने हंगी में वहा सि युववो के सिए विवाह के नारियल आते हैं हम जैमे बुद्दी वो बौन पुद्धे बात वास्तव से हसी में पी गई थी विस्तु पित्र भक्त चू डा वे मन में यह भावना उत्पन्न हुई थि पिना की इच्छा विवाह करने पी है उ होने रणमल से आग पिया कि वह अपनी बहिन वा विवाह महाराणा सें थार देवें पिन्तु रणमत ने कहा रि आपने मेरी बहिन था विवाह होगे पर उसके पु उतस हुआ सो यह मेगड़ वा स्वामी होगा कयोफिं आप मेवाड़ के भारी स्वामी हैं और महाराणा से विवाह होने पर यदि पुध उसद्त हुगा तो उस्तों चापरी से फिर्याह बरना पेगा + र्यागो उड़ा ने एस लण वा भी विलय ने यरने भीम प्रतिज्ञा दी हि एक्सिंगजी साछी हैं मी इसी झण स मेवाइ या राज्य त्याग दिया महाराणा से घिवाह होते पर यदि
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