खैयाम की मधुशाला | Khayyam Ki Madhushala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) । उस समय मैं गव्नमेंट इंटरमीडिएट कालिज प्रयाग में एफ० एए० क्लास में पढ़ता था । उन दिनों कालिज में एक लिटरेरी सोसाइटी थी । इस समिति की श्रोर से महीने में दो बार दर दूसरे शनिवार को व्या- ख्यान तथा वाद-विवाद इुश्धा करते थे जिसमें कालिज के अध्यापक तथा विद्यार्थी सभी भाग लिया करते थे । एक दिन दमारी समिति के मंत्री श्रीयुत ब्रजकुमार नेहरू को श्र से यह सूचना मिलो कि अमुक शनिवार को श्रीयुत शिवनाथ कटजू रुबाइयात उमर खेयाम पर अपना लेख सुनाएँगे । श्रीयुत शिवनाथ कटजू प्रयाग के प्रसिद्ध ऐडवोकेट डा० कैलाशनाथ कटजू के सुपुत्र हैं । उस समय ्राप मेरे सहपाठी थे । शिवनाथ जो के लेख को समभकने के लिए ही मेंने रुबाइयात उमर खेयाम को पढ़ने की जल्दी की । सबाइयात में जो कुछ पाने की झ्राशा मेंने की थी वही मुझको मिली । रुबाइयात पढ़कर मु्के ऐसा लगा जैसे मेरे हुरय में एक वृच्च उग श्राया जिसके बोज उससे सात-त्राठ साल पहले पड़ चुके थे । शिव जी--उइम क्लास में उन्हें इसी नाम से पुकारते घ--के लेख ने उस वृत्न में पहले पानी का काम किया । रुबाइयात उमर खेयाम के उस पहले पाठ से ही मेंने उसका रूपांतर करना श्रारंभ किया या. अ्रगर में अधिक सच्चाई से काम लूँ तो कहूँना कि उस प्रथम पाठ से ही मेरे मन में उसका अनुवाद होना शुरू हुआ । यह एक स्वाभाविक बात है कि जब हम किसी अन्य भाषा को सीखना श्ारंभ करते हैं तो जो कुछ दम उसमें पढ़ते हैं उसे समसकने को इम मन ही मन अपनी भाषा में उसका अनुवाद करते जाते हैं। एफ० ए० पास करके बी० ए.० में पहुँचा बी० ए० पास करके एम० ए० में बहुत कुछ पढ़ना था यदा कदा रुबाइयात पर भी नज़र दोड़ा ली पर अभी तक उमर खैयाम की कविता का मेरा ज्ञान केवल




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