अनर्घराघवम् | Anarghraghvam
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39.6 MB
कुल पष्ठ :
554
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुरारेस्तृतीयः पन््थाः । मीमांसाके भाइरहस्यादि सिद्धान्त अ्रन्थोमें जिनका नाम तथा मत आया है वह मुरारि मेथिल बाह्मण तथा प्रकृत-नाटक-प्रणेता मुरारिसे भिन्न थे । प्रायः मुरारेस्तु तृतीयः पन््था यह आभाणक उन्हींके विपयमें चला था क्योंकि उनका मत भट्मत तथा गुरुमतसे भिन्न था ।. में समझता हूँ मुरारि भी दाक्षिणात्य ब्ाह्मण॑मिसे किसी न्राह्मणवंदामें उत्पन्न हुए थे क्योंकि उनकी कवितापर भवभूतिका बड़ा प्रभाव पढ़ा हे उनके समयमें और भवभूतिके समयमें जितना अन्तर है उतने समयमें दूरवर्त्ती कविपर इतना ग्रभाव होना सम्भव नहीं है ॥ मुरारिका शाख्रीय पाण्डित्य अनर्घराघवका प्रत्येक प्रष्ठ ही मुरारिके द्ञास्त्रीय पाण्डित्य का प्रमाण है खासकर मुरारि व्याकरण घमंश्ञास्त्र वेद राजनीति और वंदोषिकके ममंज्ञ प्रतीत होते हें क्योंकि इन शाशोक तरव उनके मुखसे अनायास निकल जाया करते थे । उदाहरगाथ देखिये-- राजनीतिः--9- अदिभयो पजायजजरं सुहदयृहसुपशथुन्य शात्मबलं कदेदों बालि- प्रतिग्रहाय प्राहिणोतू ( अंक २ ) र- आरण्यो5ग्निरिव सुखदुःखामषंज तेजी विक्रमयति मण्डलस्य चाचुग्राह्यो भवति । ( अड्ू ४ ) ३- राजपुत्रो5ड्ठदो सी वालो नवबुद्धिरामपात्रमिव यद्यदाधीयस तत्तद आयुपषति । ( अड्क ६ ) ४- अरिपड्वग एवायमस्यास्तातपदानि पट तेषामेकमपि च्छिन्दन् खज़य श्रमरीं श्रियमू । ( अड्ठ ६ ) ब्याकरण-- १- प्रकृष्रकच्रभिप्रा य क्रिया फलवतों विधीनू । ( जडक २ ) र- तपोभिरस्य ब्राह्मणातिदेशों 5पि क्षत्रकाय न जहाति ( जड्क ४ ) बेद-- - परिणमयति उ्योतिवृस्या यजू पि । ( अट्ठ २ )) र-गायत्री उूपदा देवी पाप्सनसपहन्तु ते । पुनन्तु पाचमान्यरत्वास्ध्नोतु ब्रह्म ते परम ॥ ( जड्ट ४ ) घमलाख्र-- १-न दीडिप्यमाणाः क्रध्यन्तीति रक्तितार क्षत्रियमुपाददते (अड २ ) र२- आतिपातिके कमणि राज्ञां सयः शुद्धि । ( अड्डे ४ ) लि ्ि वेदोपिक-- १-विश्व॑ चानुपमस्तमस्ति हि तमः केचदय सो पाधि क - प्राच्यादिव्यवहारवीजविर हादिड्माचमेव स्थितम्र । ( अड्ड २ )) २- वेदेषिक-कन्दली -पष्डितो जगद्रिजयमानः पयटामि ( जड्कू ५ )
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