भारतेंदु की नाटय कला | Bhartendu Ki Natya Kala
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.31 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ प्रेम नारायण शुक्ल का जन्म कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील के अंतर्गत ओरिया ग्राम में २ अगस्त, सन १९१४ को हुआ था। पांच वर्ष की आयु में माता का निधन हो गया था, पिता जी श्री नन्द किशोर शुक्ल, वैद्य थे। आपकी सम्पूर्ण शिक्षा -दीक्षा कानपुर में ही हुई। सन १९४१ में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ थाl इसी वर्ष अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'साहित्यरत्न' परीक्षा में भी आपको प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा चलाये गए अखबार 'प्रताप' से शुक्लजी ने अपने जीवन की शुरुआत एक लेखक के रूप में की l
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४१)
विभिन्न उत्सव तथा वीर-पूजा-विधान में होनेयाले
नृत्य-गीत, झमिनय तथा कथोपकथन नाट्यकला के जन्म-
दार्ता हैं ।
भारतीय नाटक रचना के सम्बन्ध में एक किंवदंती चली झा
रही हू । संस्कृत नाव्य शास्त्र का झादि
अन्थ भरत मुंनि का नाट्य शास्त्र हैं। इस
झंथ में लिखा हैं कि त्रेता युग के प्रारंभ में ही देवताओं ने श्रह्मा से
सनोर॑जन की सामग्री उपस्थित करने के लिए याचना की | ब्रह्मा
भारतीय नाटक की रचना
. ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके एक पंचम बेद 'लास्य' की सप्टि
की । इस नास्य-विधान के कार्य में उन्होने ऋग्वेद से पर्याप्त
सहायता ली | इसमें इंद्र, सूय; उपस, मरुतू आदि देवों की
प्राथना में गीत हैं । यम श्रौर यमी, पुरुरवा तथा उव शी आदि
के द्वारा कहे गए अंशों में कथनोपकथन भी प्राप्त होता हैं अर
साथ ही वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि महात्माओं के चसर्ति
श्रख्यान भी मिलते हैं. । अन्य वेदों में से भी सामवेद ने गायन
यजुंब द ने अभिनय तथा झ्थव घद न स्स देकर ब्रह्मा के
्य वेद को पूर्ण किया 1 इस किंवदूंती का तात्पर्य केवल
इतना ही समकना समीचोन होगा कि श्रुत्यों में नाटक के
मूल तत्व--सूंगीत, अभिनय श्ौर कथोपकथन उपस्थित हैं ।
उपनिपद ' झन्थों में भी नाटक का अत्यन्त झ्ावश्यक झंग
सन
६४ जग्माह पाठव्यमृग्वेदात् सामम्यों गं।तमेव च ।
यजुर्वेदादमिनयात् ... रसानाथवणादपि (|
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Ranjana Dixit
at 2020-09-09 15:25:30