सूरसागर खंड 2 | Sursagar Khand-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.83 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशम स्कंघ पृ
राग कान्हरी ॥ ४२४1!
स्याम-कमल-पद-तख की सोभा ।
जे नखचद्र इंद्र सिर परसे, सिव विरचि मन लोभा ॥।
जे नखचंद्र सनक मुनि ध्यावत, नह्टि पावत भरमाही 1
ते नखचद्र प्रगट न्नजजुवती, निरखि निरखि हरपाही ॥।
जे नखचद्र फनिदट्दय तै, एकौ निमिप न टारत ।
जे नखचद्र महा मनि नारद, पलक न कहें विसारत ॥।
जे नख-चंद्र-भजन खल नासत, रमा हृदय जे एरसति ।
सूर' स्याम-नख-चद्र-विमल-छवि, गोपीजन मिलि दरसति ॥ १८०६ ॥'
राग आसावरी ॥ २४२४३
स्यामहृदय जलसुत की माला, शभ्रतिहि अनूपम छाजे (री) ।
मनहूँ बलाकपाँति नवघन पर, यह उपमा कछू स्राजे (री) ।
पीत, हरित, सित, श्ररन मालवन, राजति हृदय विसाल (री ) ।
मानहें इंग्रधनुष नभमंडल, प्रगट भयौ तिहि काल (री) ।
भूगु-पद-चिद्भ उरस्थल प्रगटे, कौस्तुभ मनि ढिंग दरसत (री) 1
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बैठे मातौ पट विध इक संग, श्रद्ध निसा मिलि हरपत (री) ॥।
भजा बिसाल स्याम सुंदर की, चदनखौरि चढ़ाएं (री
के
। १८०१७ 1ह।
राग मलार ॥ २४२६ ॥।
निरखि सखि सुंदरता की सीवा ।
अ्रधर अनप मुरलिका राजति, लटकि रहति अ्रध ग्रीवा ॥
मंद मंद सुर परत मोहन, राग मलार घजावत ॥
कवहुँक रीभि मुरलि पर गिरिघर, स्रापुह्ि रस भरि गावत ॥।
हँसत लसति दसनावलि-पंगति, ब्रज-वनिता-मन-मोहत ।
मरकतमनि-पुट-विच मुकुताहल, वंदनभरे मन सोहत ॥
मुख विकसत सोभा इक आावति, मत्तु. राजीवप्रकास ।
सूर' श्ररून-प्रागमन देखि कै, प्रफूुलित भए हुलास ॥ १८०८त'
राग टोड़ी ॥ २४२७ ॥।
गोपी जन हरिवदन निहारति ।
कुचित श्रलक विश्ुरि रहे श्रूव पर, ता पर तन मन चार्रति ॥
वदनसुधा. सरसीरुहलोनन भृवुटी दोउ. रखवारी ।
मनौ मधप मधघपानहिं ग्रावत, देखि डरत जिय भारी ॥।
इक इक झ्रलक लटकि लोचन पर, यह उपमा इक झावति ।
मनहूँ पन्नगिनि उत्तरि गगन तै, दल पर फन परसावति ॥
मुरली श्रघर धरे, कल पुरत, मंद मंद सुर गावत ।
सूर' स्याम नागरि नारिनि के, चंचल चितहिं चुरायत ॥ १८०९६॥
'राग विलावल ॥ २४२८ ॥।
देखि सखी. यह. सुंदरताई !
चपल-नैन-विच चारु नासिवय, इक्टक दृष्टि रही तहें लाई ॥।
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