पाप की पहेली | Paap Ki Paheli

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Paap Ki Paheli by गिरीश प्रणीत - Girish Pranit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छुषान त्रि०--वाद खूब कही | प्रेमिका की तलाश में मार ख 1 पुलीस के चक्कर में पड़े तो ससुर से सहायता लें ख़ र उस अवस्था में जब कि अभी ब्याह हुए भी अधिक दो हुए हैं । झज्ञी मैं तो ऐसी डुर्गति होने की नौबत झाते प ए जाना पस्रन्द करूँगा किन्तु उनसे सहायता की वात सा दूर जहाँ तक शपना बस चलेगा उनके कानों तक सब [न ज़ानेदूगा। परन्तु ज़रा सोचो तो रामकिशोर यां वी घटना घट ही गई तो ख़बर पर मैं पहुरा तो बैठा ना हँगा । कलकत्ता शहर हिन्दी-समायार-पत्नों का घर ठहर रे हिन्दी के प्रेमी हैं समाचार-पत्र मालिक पत्र आदि न प उनका खाना न हज़म हो । छेखी अवस्था में तो मेरे लिए टू ने की बात हो ज्ञायगी । बहुत अच्छा किया जो तुमने या हा दिया माइ सामकिशोर कलकते तो नाहकू झाये यह प्र पैर जकड़ उठँगे ज्ञाना हो था तो चस्बई जाते । रामकिशोर से उत्तर दिया---भाई चात तो बहुत सही कहर । लेकिन फिर भी कलकतते से एक फ़ायदा हो सकता है । जि०्-ससो कया ? रॉमिकिशोर से सुसकराते हुए जबाब दिया--यही कि कल [ में झपने उद्योग में निराशा श्र झासफलता दाने पर भी 1 पुल्ते का ला धो पर के करा न




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