नाकमें दम | Nak Me Dum

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Nak Me Dum by श्रीयुत जी० पी० श्रीवास्तव - shree Jee Pee shree Vastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला छठ सकल मनोकामना सिद्ध हो जाती है। कोई सत्य भवंसे 7 उनका स्मरण भी तो करे । मुसीचत०--धगर ऐसा है तो कहिये अपनी शादीके लिये उनका फिर ध्यान करू ? १-२-३-४नसन्यासी --झय इस अवस्थामे चिवाह मुसीवत०--क्यों क्या दर्ज है ? तुम लोग तो ऐसे चकराये कि जैसे में फांसीपर च्ढने जाता हूँ । १ सन्यासी--दाताजी इस झवस्थामें अब झपनी मुक्तिके लिये इेश्वरका ध्यान कीजिये । इस लोकसे सबन्ध तोड़िये । अपना परलोक बनाइये । .। २ सन्यासी--इस वस्थामें विवाहकी वेदीपर चढ़ना फासी चढ़नेसे भी कठिनतर है । क्योंकि इसकी फंसरी तो कुछ ही घड़ीमें छुटकारा दे देती है परन्तु उसकी फंसरी शिरपर चिन्ताझोंका टोप पहनाकर सदेव दम घोंटती रहती है। और-- चिता चिन्ता ससाद्य क्ता घिन्टुमात्रं विशेषत । सजीवं दृहहते चिन्ता निर्जीवे दुदते चिता ।। ३ संन्यासी -हा भारतमाता जहां तेरे पुत्र जब चूद्धावस्थाको माप्त होते थे ससारके भगड़ोंसे दूर भागते थे । पवेतों और तपोवनोंको निकल जाते थे श्रौर एकान्त में ना




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