दाखुंदा | Dakhunda

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Dakhunda by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चट्टानके पीछे वाले झादमीने कहा---ले जा इसका गोश्त कबाब बना- कर खा । यहाँ पैसा श्रोर श्रादमी बेकारका नहीं है जो इसके पीछे आये | ४. निराशा और साइस जल्दी कर श्रागे बढ़ दाखुन्दा --यसावुलने हाथ-बैचे जवानको आगे चलने के लिये कहा आगे चलनेके झ्र्तिश्क्ति जवानके लिये कोई रास्ता नहीं था । लेकिन एक बात उसे झ्रागे पग बढ़ानेसे रोक रही थी । उसने घबरादटसे चारों ओर सजर दौड़ाई मानो किसीसे बिदाई चाह रहा हो । यसावुलने सुस्ती देखकर समझा कि वह चलना नहीं चाहता । उसने उसकी पीठपर कोड़ा जमाकर कहा--बहरा है कया है... यसादुल अपनी बात समास नहीं कर पाया था कि पनघटसे किसीकी क्रन्दन पूण श्रावाज आईं नहाय यादगार तुके क्यों मार रहा है ? कहाँ ले जाना चाहता है यसावुलने उधर निगाह करके देखा । एक घोड़शी उसकी झओर दोड़ी आ रही थी । उसने जवानसे पूछा--क्या यादगार तेरा नाम है १ सिर हिलाकर तरुणुने रबीकार किया । यसावुलकी प्रसन्नताकी सीमा न रही उसने हँसते हुए कहा --- --यार घरमें ओर हम खोजमें दुनिया भर की खाक छानें अरब भी तू झपनेको निरपराघ समभ रहा है? जिस मुल्जिमको मैं तलाश रहा था वह तू ही तो है--श्रौर गदन पर दूसरा कोड़ा जमा दिया | अब तक घोड़शी भी पास आ गई थी यह कहनेकी श्रावश्यकता नहीं कि. बहु गुलनार थी । बफादार शुलनारमें अपने सच्चे प्रेमीकी गि फ़्तारीकों सहन करने- की शक्ति नहीं थी । इसीलिये वह एक ऐसे राल्सी स्वभावके सिपाहीके समत् झानेमें न हिचकिचाई जिसे देखते ही लोग लाहोल न लाकुव्वत कहद उठते । नम्यमम है नस




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