पाली प्रबोध | Pali Prabodh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pali Prabodh by पं आद्यादत्त ठाकुर - Pt. Aadyadatt Thakur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं आद्यादत्त ठाकुर - Pt. Aadyadatt Thakur

Add Infomation AboutPt. Aadyadatt Thakur

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पाठी-प्रबोध हे क् _..... बण-विभाग - चेदिक भाषा में ३४ श्रन्नर माने गए हैं । यदद संगलया शने:-झनें; कम डोतो गईं | व्तंमान संस्कृत में ५० हो गई | पाली तक पहुंचने 'पहुँचते वद्द सख्या श्रोर मी क्षीणा दो गई | स्व॒र--पाली मे केवल झ्ाठ स्वर पाए जाते हैं | यथा--श्र, प्रा, इ, ई,ड, ऊ, ए.श्रौर श्रो। ऋकार के स्थान में कहीं श्र, कटी द श्रीर कहीं उ होते हैं । उदाहरणाथ ऋ के स्थान में श्र का प्रयोगन--गहे-टपद्द ; नत्य्नघ । ऋ के स्थान में इ--ऋणमूलइश; सरिलिसि, श्गटर्तिंग | शऋ के स्थान में उ--श्तनउद ; ऋषभटउसभो । लुकार का प्रयोग तो सस्कृत में दी शहुत विर्ल हे. पाली में हो उसका सरवेधा अभाव दे । ऐ श्रौर श्री भी पाली में नहीं पाए. जाते । ऐ के स्थान में प्रायः ए मिलता दें । यधा-- ऐंरावर-रगावगो; 'बेमानिक्टरेमानिक , वयाकरण--गेय्याकरण | कहीं-कहदीं ऐ के स्थान में डकार तथा इंकार देग्व जाने हैं | यधा-- ब्रेवेय॑ >> गीवेय्यं ; लेघव'-सिधवो । खो के रमन में शपिफतर झो देखा जाता दे । यया-- श््रौद रिक.-> प्रोद रिफः ६ दौवारिकध-दोवा रिफो । कईी-कट्टीं 3 भी देखा जाता है । यप'--मछिंरसमु्ि ३ शौद्धत्य॑-रउद्धत्य । जे न्न न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now