गायत्री की सुलम्ब साधना | Gayatri Ki Sulamba Sadhana

Book Image : गायत्री की सुलम्ब साधना  - Gayatri Ki Sulamba Sadhana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अऋ. 7 *# / इन दिनों जिससे जितनी तपश्चयी संघ सके उसे उतनी साधनी चाहिए । तपश्चयों में मुख्य बात यह है-१-भूमि-शयन, र- जूते या छाते का त्याग, रे-शरीर पर कम वस्त्र, ४-हजामत न बनवाना एवं स््ट'गार-सामिप्रियों का त्याग; ४-छपना भोजन, _ जल, चस्त्र धोना 'झादि शारीरिक कार्य स्वयं करना, प-धघाठु के . बतेनों का प्रयोग छोड़ना, उ--पशुआओं को सवारी का त्याग, ८. न्नह्मचयें, ६--सौन, १०-उपवास । इनसें से जो तंप जितनी मात्रा में निससे हो सके उसे उतना करने का प्रयत्न करना चाहिए 1 . *जो लोग केवल एक समय फलाहार पर नहीं रह सकते वे दो बार ले सकते हैं । जिनके लिये यह भी कठिन दे वे दोपहर की बिना नमक का एक अन्न से बना भोजन और शाम को दूध लेकर अपना झधे उपवास चला सकते हैँ 1» ('झन्तिम दिन २४० आहुतियों का वन करना चाहिए ।' दर आइुति में कम से कम ३ माशे साभिश्नी शरीर एक माशे घी. होना चाहिए ।. अनेक प्रयोजनों में सफलता ! गायत्री सर्वेपिरि मन्त्र दे । भारतीय धर्म में इससे बेदां श्र कोई मन्त्र नहीं दे । जो काम अन्य किसी भी मन्त्र से हो सकते हैं वे सभी गायत्री मन्त्र से भी दो सकते हैं । दीर्घकाल़ीन _ गायत्री-उपासना से साधक में 'ात्म-बल पर्याध्च मात्रा में संचित हो जाता दै । तप-बल को विविध कार्यों में ' प्रयुक्त ; करके उससे 'झनेक लाभ प्राप्त किये ज़ा सकते हैं । स्मरण रखना चाहिए कि झपने पास जितनी बढ़ी साधन की पूँजी द्ोगी .उसी अनुपात से साथ दोगा ।. कुछ विशेष म्रयोजनों के लिए विशेष प्रयोग नीचे




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