आधुनिक यूरोप का इतिहास | Aadunik Europe Ka Itihas

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Aadunik Europe Ka Itihas by मंगला प्रसाद - Mangala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्रघ्याय १ फ्रांस-क्रान्ति से पूर्व का यूरोप (छिप्राए०छ€ ०४ घट न ० पट कल्शटप हू टपणेपािंण्श) सन्‌ १७८६ में दो ऐसी घटनाएं घटीं, जिनका संसार में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं बहली घटना थी फ्रांस में क्रान्ति का. फूटना प्रौर दूसरी थी संयुक्तराज्य श्रमेरिका में संविधान का प्रचलित होना । जहाँ दूसरी घटना से संसार में संगठन भौर विस्तार की भावना के युग का श्रारम्भ हुमा वहाँ पहली घटना ने विद्व को श्रव्यवस्था के गत: में फेंक दिया । फ्रांस की क्रान्ति के फूटने के साथ-ही-साथ “युरोप का इतिहास एक राष्ट्र, एक घटना श्रौर एक व्यक्ति का इतिहास बन गया । वह राष्ट्र फ्रांस, वह घटना फ्रांस की क्रान्ति और वह व्यक्ति नेपोलियन है ।” इससे पूर्व कि फ्रांस की क्रान्ति के विषय' में कुछ कहा जाये, युरोप की महत्त्वपूर्ण घटना से पूर्व के युरोप॑ की स्थिति का उल्लेख: झ्रावश्यक प्रतीत होता है । .साधारणत: यह कहा जा सकता है कि तत्कालीन युरोप की वागडोर रईसों के हाथों में थी । यह वात केवल उन देशों पर ही लाश नहीं होती जहाँ राजाओं कीं शासन-प्रणाली थी, अपितु उन पर भी लाप॒ होती है जहाँ प्रजातन्व्ात्मक शासन. चलता था । वेनिस का प्रजातन्त्र एक विशिष्ट वर्ग द्वारा शासित था । यहीं प्रणाली स्विट्जरलैंण्ड में भी चालू थी । इंगलैण्ड में भी, जहाँ संसद्‌ शक्तिशाली थी, सत्ता जनता की श्पेक्षा बड़े जमींदारों के हाथों में थी । जनसाधारण का तो कोई मूल्य हीं न था 1. यही दा भ्रत्य यूरोपीय देशों यथा श्रास्ट्रिया, हंगरी, प्रशिया, रूस, फ्रांस, स्पेन श्रौर पोलैण्ड इत्यादि की भी थी । श्रधिकाँश युरोपीय देशों के शासक स्वेच्छाचारी थे । यद्यपि भ्रटारहवीं सदी में उन्हें उदार स्वेच्छाचारी दासक कहा जाता था । जनता को अपने देश के शासन में कोई अधिकार प्राप्त स था । उन्हें व्यवितगत स्वतन्त्रता न थी । उनकी प्रत्येक इच्छा शासकों की इच्छा पर निभंर रहा करती ही । लगभग युरोप भर में मुज़ारों की प्रथा का बोलवाला था । उस युग में युरोप के शासक दगावाज़ और झ्राचार-हीन आओ! अ्रठारहर्वी -शत्ताब्दी में श्रस्तर्राष्ट्रीय चरित्र काफी सीमा तक गिर चुका था । फ्रेड्रिक महाद. जैसा व्यक्ति भी मेरिया थिरेसा के पिता चाल्से॑ पष्ठम को वज़न देने पर भी सिलेसिया का प्रदेश हड़पने में नहीं हिचका था । रूस, प्रिया श्रौर .झास्ट्रिया ने साशहिक रूप से पोलैण्ड के अस्तित्व को समाप्त करने का पड्यन्त्र रचा था। यह वह समय था जब झ्ड़ोस-पड़ोस के निबंल राष्ट्रों की समाप्त' करके श्रपने देश की सीमाश्रों को बढाने का पागलपन प्राय: सभी राजा लोगों में पन॑ंप रहा था । “जाति श्रौर राष्ट्रों की सीमाओं




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