आर्य समाज का इतिहास [भाग २] | Arya Samaj Ka Itihas [Part 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) अवसर सिला। उनसे भी शुद्धचेतन ने सन्यास देने की प्राथना की । पहले तो उन्होंने कुछ संकोच किया परन्तु श्र साघुश्रों की सिफारिश श्राने पर सन्यास देना स्वीकार कर लिया । पूर्णानन्द्‌॒ सरस्वती से सन्यास लेकर शुद्धचेतन स्वामी द्यानन्द सरस्वती बन गया । घर से निकल कर कुछ समय तक स्त्रामी द्यानन्द ने गुजरात में ही भ्रमण किया वहां से बड़ौदा होते हुए चेतन मठ द्ोकर नमंदा के तट पर चिरकाल तक भिन्न-भिन्न स्थानों में निवास किया । नमदा तट से श्राबू ठहर कर सं० १६१९ के कुम्भ पर स्वामी दयानन्द हरिद्वार श्राये श्रौर वहां के मठों श्रीर महन्तों की माया का पहली वार दिग्दशन किया । हरिद्वार से आप हिमालय की श्र चल दिये श्रोर सच्चे योगी की तलाश में कठिन से कठिन चोटियों पर चढ़ कर गुफाओं में घुस कर श्रौर घाटियां पार करके सच्चे जिज्ञासु होने का परिचय दिया । इस भ्रमण में द्यानन्द ने कई सच्चे और भरूठे योगियों के दुशन किये । भूठे योगियों से उन्हें घृणा उत्पन्न हो जाती थी श्रौर सच्चे यागियों से वह कुछ न कुछ सीख ही लिया करते थे । चाणोद कल्याणी में वास करते हुए श्रापका योगा- नन्द॒ नाम के एक योगी से परिचय हुआ । देर तक स्वामी ने उनसे योग की क्रियायें सीखीं । झ्रहमदाबाद में दो और योगियों से उन्हें योगविद्या सीखने का झवसर मिला । इस प्रकार मिले हुए अवसरों से जिज्ञासु ने पूरा लाभ उठाया ।




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