द्रव्य विज्ञान | Dravy-vigyan

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Dravy-vigyan by साध्वी डॉ. विद्युतप्रभा श्रीजी - Sadvee Dr. Vidhayutprbha Shreeji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचाराग सूत्र का प्रारभ इसी जिज्ञासा से होता है। बहुत से व्यक्तियों को यह सज्ञा (ज्ञान) नही होती कि मै किस दिशा से आया हूँ मेरा पुनर्जन्म होगा या नहीं मै कौन हूँ यहाँ से च्यव कर कहाँ जाऊँगा? यह प्रइन स्व के सबध मे है। मै कौन हूँ? समाधान मिलता है - मै आत्मा हूँ। आत्मा धर्म-दर्शन का मूल आधार है। आत्मा है तो सब कुछ है। इसी कारण जैन दर्शन ने आत्म-बोध पर गहरा जोर दिया। जो आत्मा को जानता है वह सब कुछ जानता है। पाइचात्य पुदुगल (816) को ही महत्त्व देते है और उसी के ईर्द- गिर्द जीवन दौली का निर्माण व विस्तार करते है। जबकि भारतीय दर्शन अशाइवत पुद्गलो के पार शाश्वत चैतन्य के अनुभव की प्रेरणा देता है। मैत्रेयी ने याज्ञवल्क्य से कहा- मै उसे स्वीकार कर क्या करूँ जिसे पाकर मै अमृत नहीं बनती जो अमृतत्व का साधन है वही मुझे बताओ। भारतीय दर्दन अध्यात्म की आधार दठिला है। मोक्ष का अर्थ है - चैतन्य बोध यथार्थ तत्त्व-विज्ञान ही चैतन्य-वोध का कारण है। जिसे ससार समझ मे आ गया वह सत्य समझ लेता है। ससार का तात्पर्य ससार की असारता अस्थिरता और अशाइवतता से हैं। जैन दर्शन के अनुसार षड् द्रव्यो का विस्तार ही ससार है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे षड्-द्रव्यो का निरूपण सागोपाग दृष्टि से हुआ है। वैसे यह विषय इतना विस्तृत व गहरा है कि इस छोटे-से ग्रन्थ मे समा नहीं सकता। पर निद्चित ही यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत अन्थ मे प्रस्तुति का आधार विस्तार या सकोच नहीं पर स्पष्टता और सरलता 1 इह मेगेसि नो सना भव अख्यि मे आया उववाइए णत्यि मे आया उववाइए के अहमासी के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि आचाराग सूत्र 1/1-2 2 एग जाणइ से सब्वे जाणइ 3 येनाह नामृता स्या कि तेन कुर्यामु। यदेव भगवान्‌ वेद तदेव मे ब्रूहि्‌ (वृहदारण्योपनिपद्‌)




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