दैवी संपद | Daivi - Sampad

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Daivi - Sampad by रामगोपाल मोहता - Ramgopal Mohta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे देवी सम्पदू झुकः -नआनहगााण घुथुमा घबरा स्स्रस्‍ला थ्रतन्त्रता और स्वतन्त्रता अर्थात्‌ बन्धन और मोक्ष नव्पज़ेटकटफछि 2 स्वतन्त्रता श्रर्थात्‌ मोक्ष के लिए बेचैनी का कारण यू कैसी विचित्र बात है कि यद्यपि संसार में सभी देहघारी किसी न किसी रूप से परतन्त्र अर्वात्‌ सॉँति-भॉति के बन्घरनों से बचे हुए हैं--सवंधा स्वतन्त्र कोई भी नहीं है--फिर भी प्रत्येक प्राणी स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर छटपटाता रहता है शोर स्वतन्त्रता सब को एक समान प्यारी है । बालक अपने पूर्वजों के अधीन स्त्री पुरुप के अधघीन सेवक स्वामी के अधीन प्रजा राजा के अधीन राजा सरियादार्भों के अघीन छोटे बढ़ों के अधीन व्यक्ति समाज के नधघीन एव व्य्टि सम्टि के अधीन रहते हैं । आस्तिक लोग अपने को इंश्वर के भधघीन मानते




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