वेद - रहस्य खंड 3 | Ved Rhasay Khand 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन ११ है, पर कभी विरके ही वह अपनी टीकामें किसी उच्चतर अ्थको प्रदर्शित करता है। यद्यपि कभी-कभी वह किसी उच्चतर अभिप्रायकी झलक आ लेने देता हैं, या इस (उच्चतर अभिप्राय) को केवल एक विकल्पके रूपमें, मानो किसी याज्ञिक गाथात्मक व्याख्याके हो सकनेकी सभावनासे निराशा होकर, विवद्य-सा होकर, प्रकट करता हैं। पर फिर भी वह वेदकी आध्यात्मिक रूपसे परम प्रामाणिकताको मानता है, इससे विमुख नही होता और नाही वह इस वातसे इन्कार करता है कि ऋचा- ओरमें एक उच्चतर सत्य निहित है। यह उपर्युक्त वात हमारे आधुनिक कालतक वच रही है और पौर्वात्य विद्वानोद्ारा इसका प्रचार भी किया गया हैे। पदिचिमी घिद्ानोका सत पद्चिमी विद्वानोने कर्मकाण्डीय परम्पराको तो सायणसे ले लिया, परन्तु अन्य वातोंके लियें इसको (सायणको) नीचे घकेल दिया। आर वे अपने ढगसे शब्दोकी व्युत्पत्तिपरक व्याख्याको लेकर चलते गये, या अपने ही अनुमानात्मक अर्थोके साथ वैदिक मन्तनोकी व्याख्या करते गये और उन्हें एक नया ही रूप प्रदान कर दिया, जो कि प्रायश उच्छ- खत तथा कल्पनाघ्रसूत था। वेदमें उन्होने जो कुछ खोजा, वह था भारतका प्रारम्भिक इतिहास, इसका समाज, सस्थाए, रीति-रिवाज तथा उस समयकी सम्यताका चित्र । उन्होंने भाषाओंके विभेदपर आधारित एक ,मत, एक परिकल्पनाकों घडा, कि उत्तरके आयोंकि द्वारा द्राविडी भारतपर आक्रमण किया गया था, जिसकी कि स्वय भारतीयोमें कोर्ड स्मृति या परम्परा नहीं मिलती और जिसका कि भारतके किसी महा- काव्य या प्रमाणभूत साहित्यमें कही कुछ उल्लेखतक नहीं पाया जाता । उनके हिसावसे वैदिक धर्म इसके सिवाय और कुछ नहीं कि यह प्रकृतिके देवताओकी पूजा है, जो सौर गाथाओंसे भरी हुई तथा यज्ञोंसे पवित्र की गयी है तथा एक याजिक प्रार्थनाविधि हैं जो कि अपने विचारों तथा क्रिया-




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