ग़बन | Gaban
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.58 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दयानाथ ने चिढ़कर कहा--ठुम तो जले पर नमक सिड़कती हो,
बुरा मालूम होता है, तो लाश एक हजार निकाल कर दे दो, महाजन
को दे ्राऊं, देती हो ! बुरा सुक्े खुद मालूम होता है; लेकिन उपाय
क्या है ! गला केसे छूटेगा !
जागेश्वरी--बेटे का व्याह किया है कि ठट्ठा है ? शादो-ब्याह
सभी कज लेते हैं, तुमने कोई नयी बात नहीं की । खाने-पहनने के लिए कौन
कज़ लेता है । धर्मात्सा बनने का कुछ फल मिलना चाहिए या नहीं ! तुम्हारे
ही दर्जे पर सत्यदेव हैं, पक्का मकान खड़ा कर दिया, जर्मींदारी खरीद
ली अपनी बेटी के ब्याह में कुछ नही तो पाँच हजार खच किए ही होंगे !
दयानाथ--जभी दोनों लड़के भी तो चल, दिये
'. जागेंश्वरी-मरना-जीना तो संसार की गति है। लेते हैं वह भी
मरते हैं, नहीं लेते वह भी मरते हे । द्रगर तुम चाहो तो छः महीने में
सब रुपये चुका सकते हो ।
दयानाथ ने त्योरी चढ़ाकर कहा--जो बात जिन्दगी भर नहीं को, वह
तब आखिरी व्रक्त नहीं कर सकता | बहू से साफ-साफ कह दो, उससे परदा
रखने की जरूरत ही क्या है, त्रौर परदा रह ही के दिन सकता है ! श्राज
नहीं तो कल उसे सारा हाल मालूम हो ही जायगा । बस, तीन-चार-चीजें
लौटा दे, तो काम बन जाय । ठम उससे एक बार कहो तो !
जागेंश्वरी झुकलाकर बोली--उससे ठम्ही कहो, मुभसे तो न कहा
जायगा | ह
सहसा रमानाथ टेनिस रैकेट लिए बाहर से श्राया । सफेद टेनिस
शरट था, सफेद पतलून, कैनवस का जूता--गोरे रग श्रौर सुन्दर मुखाकृति
यर इस पहनावे ने रईसों की शान पैदा कर दी। रूमाल में बेखे के गजरे
लिए, हुए. था । उससे सुगन्ध उड़ रही थी । माता-पिता की द्रॉखें बचाकर
' चह जीने पर जाना चाहता था कि जागेश्वरी ने टोका--इन्हीं के तो सब
कॉटें बोये हुए; हैं, इनसे क्यों नहीं सलाह लेते १ (रमा से) ठमने नाच-
तमाशे में वारह-तेरह सौ रुपये उड़ा दिये, बतलाश् सराफ को क्या जवाब
दिया जाय १ बड़ी मुश्किलों मे कुछ गहने लौटाने पर राजी हुआ; मगर
बहू से गहने मॉगें कौन ! यह सब तुम्हारी ही करतूत है ।
गुवन २४.
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