हलाहल | Halaahal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमंत्रण जीवन की श्रभिशस यात्रा से ज्ञात पथिक श्राओ्रो इस कल्पना-कुटोर में बेठकर कुछ देर विश्राम कर लो छु देर श्पने शिथिल चरणों को कवि की विचार-धारा में डाल उनकी थकान सिटालो उनमें नई स्फू्ति नया उत्साह और जीवन के तभिप्रेत ध्येय की आर अनवरत चलने का नया सकल्प संचित कर लो फिर अपने मनोनीत पथ पर अग्रसर होना चले जाना । अभी तो तुम थके हुए हो निराशा की धूलि से तुम्हारा शरीर श्रौर मन दोनों ही सलिन है और देखता हूँ इस यात्रा में अव्त्त अमिलाषाओ का बोभक तुम्हारे सिर पर क्रमशः बढ़ता हो गया है । तुम्हारे यौवन-सुलभ नेत्रों में अरब वह निर्विकार हीरक-दीपि कहाँ है ? तुम्हारा निम॑ल दास जोकि सष्टि के निर्माण-सुख का एक मात्र चोतक् था--वह निःशक हास भी तो अब एक सुसकराहट बनकर रह गया है । तुम्हारे स्निग्ध और उन्नत ललाट पर देखो तो समय ने रेखागशित की कैसी गुत्थियाँ सुलकाने की कोशिश की है । तुम्हारे बालों में कालिमा को भी ज्योतिर्मय बनाने वाली वह झ्रलौकिक चमक कहाँ है? श्रौर तुम्हारे शरीर की भीनी-भीनी सुगंध जो जीवन में केवल एक बार केवल यौ वन-बसंत का प्रथम कोका बनकर आती हे--वह सुगंध भी चली गई । अरब तो तुम घूलि-धूसरित स्वेद-विगलित व्याकुल श्र व्यथित यात्री हो । द्राश्रो इस कल्पना-कुटीर में बेठकर कुछ देर विश्वाम कर लो । में तुम्हारा श्राह्ान करता हूँ । क्या कहा ? तृषातुर हो ? लो मैं भी ठम्दारी प्यास बुमाता




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