सांख्य-शास्त्र के तीन प्राचीन ग्रंथ | Sankhya-Shastra Ke Teen Prachin Granth
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.04 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च्व-सामस * हि
स्गति--तत्वों के कदने की प्रतिश्षा फरप्टे जय सीन खूओो में
स्श्तेपतः स्तांरे तत्वों फा चर्णन फरते हई
अष्टी प्रकृतयः । र-पषोडझ विकारा* ।- इ-पुरुषः ४ ॥
अर्थ-आठ मकतियें ( ९ ) सोछह विकार (३) सुरुष (४)
भाष्य-तत्त्व यह २८ हैं--अव्यक्त, मत, अद्ार, पांच
तन्पान, पांच महाभूत, म्यारह इन्द्रिय, और पुरुप ॥
इनमें से पुरुप चेतन है, कोष ९४ जड़ हैं। इस तरद पर इन
तत्वों के दो भेद दोसक्ते हैं, लड़ और चेतन । जड़ के फिर दो
भेद हैं, पकृति और विक्ञाति । भक्ति वदद जिस से आगे कोई
और तत्त्व बन जाता हैं, निकति चह जिससे आगे कोई नया तत्त्व
नहीं उत्पन दोवा ॥
भकृतियाँ आठ हैं, अव्यक्त, मदव, अहड्ार और पाँच तन्मात्र।
इनमे से सूलतन््व तो अच्यक्त ही है, ओर सारे तत्त्व उससे इसतरहद
पर उत्पन्न हुए हैं । कि पढले केघक एक अव्यक्त दो तत्त्व था,
पुरुप उस अव्यक्त में सोए पड़े थे । अब जिसा एके चुम्बक की
सर्निधि से छोड़ें में क्रिया उत्पन्न होती है, इसी तरद चेतन पुरूषों
की सल्िधि से अच्यक्त में क्रिया हुई । वद क्रिया पुरुषों की
सर्निधि में पुरूषों के लिये हुई थी, इसलिये उसका फक यह दुआ
कि अब्यक्त से मदद उत्पन्न हुआ । यदद मदव दी घुरुप के लिये
अनकरण ज्ञा चुद्धि है। इसी को सम्टिरप में महल तत्व वा सब
का साझा अन्तःकरण और इसी को व्यप्टिडिप में जुद्धि वा अपना.
अन्तध्करण कइते हैं । इस मद्दव में फिर आगे क्षोभ हुआ, तो
अद्लार उत्पन्न हुआ, अथाव सम्टि आस्मता “ में हूं ” की
दाति उत्पन्न हुई, यदद मदद का कार्य द्रव्यरूप दे । फिर अहड्ार
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