विचार वल्लरी | Vichar Vallari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की अन्तर है वह यहाँ याद रखना दै। यह भी हो सकता दे कि नीतियुक्त काम का असर अच्छा हुआ यह सदा दिखाई न दे सके नीति के विषय में विचार करते हुए हमें इतना ही देखना दै कि किया हुआ काम शुभ है और शुद्ध हेतु से किया हुआ दै। उसके फल पर हमारा वश नहीं फल देने वाला तो एक-मात्र इंश्वर है । शहंशाह सिंकन्द्र को इतिहासकारों ने मददान्‌ माना दे । वह जहाँ- जहाँ गया बहाँ-वहाँ यूनानी शिक्षा शिल्प प्रथाओं आदि को प्रच- लित किया और उसका फल हम स्वाद से चख रहे हैं। पर यह सब करने का उद्देश्य बड़प्पन पाना था अतः कौन कह सकेगा कि उसके काम में नीति थी ? वह महान्‌ भले ही कहदलाए पर नीति- वान नहीं कहा जा सकता | ... ऊपर प्रकट किये हुए विचारों से साबित होता है कि प्रत्येक नीतियुक्त काये नेक इरादे से किया हो इतना ही काफी नहीं है बल्कि वह बिना दबाव के भी किया हुआ होना चाहिए । में दफ्तर देर से पहुँचूँ तो नौकरी से हाथ धोऊँगा इस डर से में तड़के उठ तो इसमें रत्ती-भर भी नीति नहीं है। इसी तरह मेरे पास पैसा न हो इसलिए मैं गरीबी और सादगी की जिन्दगी बिताउँ तो इससें भी नीति का योग नहीं है पर में धनवान होते हुए भी सोचूँ कि मैं अपने आस-पास दरिद्रता और दुःख देख रहा हूँ ऐसे समय मुझसे ऐश-अआराम किस तरह भोगा जा सकता है मुझे भी गरीबी में और सादगी से रहना चाहिए तो इस प्रकार उपनाई हुई सादगी नीतिमय सानी जायगी । इसी तरह नौकर छोड़कर भाग जायंगे इस डर से उनके साथ हसदर्दी दिखाई जाय या उन्हें अच्छी या अधिक तनख्वाह दी जाय तो इसमें नीति नहीं रहती बल्कि इसका नाम स्वाथे-बुद्धि है। मैं उनका भला चाहूँ मेरी सम्रद्धि में उनका हिस्सा है यह सममकर उन्हें रखूँ बतो इसमें नीति हो सकती हे अर्थात्‌ नीतिपूर्वक किया हुआ काम वह होगा है १५




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