कविता कौमुदी | Kavita Kaumudi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नचिता-कौसुदी । ही *''९ अंक आह तक, अधि रीए सी सक उच अधि ही अधि लव अप अथ,,ीफदि चिकना २५ शिवतत्वविवेक २८ शिवाचनचन्द्रिका २६ शिवादित्यसणिदी पिका २६ सिद्धान्तलेशसंग्रद २७ शिवाद्धतनिण॑थ ३० हुर्विंशसारयरितम यहाँ इनके कुछ सनीदहुर स्छोक उद्धत किये जाते हैं - के चोरा: के पिछुनाः के रिपचः के$पि दायादाः ० जगदखिलं तस्य चशे यस्य चशे स्यादिद चेतः ॥ १ ॥ चोर कोन है, छुगलख़ोर कौन हे, शत्र कौन हे, भोर भाई चन्घु कौन हैं ? यह समस्त संसार उसके वश में है, जिसने अपने चित्त को अपने यश में कर लिया हे । पुष्पति पुरुषे सलिलेसु'प्णति पुष्प फर्ठ च तरव इव चत न्ते सन्त: समसुपकत रि चापकतरि च ॥ २ ॥: जिस प्रकार चृक्ष जठ से सींचने वाले अथवा फल फूछ तोड़ने चाले दोनो के साथ समान व्यवहार करता हे; उसी प्रकार अपकार करने वाले या उपकार करने वाले दोनो के साथ सऊनों का समान व्यवहार होता है । पितृभि: कलहायन्ते पुन्नानध्यापयम्ति पितृमक्तिमू परदाराजुपयन्तः पठन्ति शास्त्राणि दारेषु ॥ ३ ॥। पिता के साथ तो कद किया जाता है, आर पुत्रों को पितृभक्ति पढ़ाई जाती हैं। स्वयं परस्त्री का उपभोग करते हैं, और स्त्री को शास्त्रोपदेश सुनाते है । नीतिज्ञा नियतिज्ा चेद्शा अपि भवन्ति शास्थसा: ग्रह्मज्ञा अपि लम्या स्वाशानज्ञानिनों विरखा ॥ ४ ॥॥ नीति जानने वाले हैं; भाग्य जानने चाल, चेद जानने वाले और शास्त्र जानने वाले भी है घ्रह्म को भी जानने वाले मि सकते हैं: पर अपन अज्ञान को जानने वाले बहुत कम है । ने ले सका, कर क काकलक ेवलीमिक,




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