पाणिनीय व्याकरण पद्धति में स्फोट का स्वरुप | Conception Of Sphota In The Paniniya System Of Samskrit Grammer

Conception Of Sphota In The Paniniya System Of Samskrit Grammer by चन्द्रभानु त्रिपाठी - Chandrabhanu tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ख. नित्य हैं क्यौ कि अथैबौधकाल पर्यन्त स्र्थित इस गौ शब्द का विनाश तत्पश्चात कैसे होगा ? तावत्व्यर्ल स्थिर चैन कः पश्यान्नाशसिष्यति .. तथा विमु हैं बयौकि अकारादि वर्ण की पक समय मैं ही सर्वत्र उपलब्न्धि हौती हे जर्थात विभिन्‍न दैशो मैं सक साथ कई वक्ता अ ध्वनि का उच्चारण करत हैं । आगे इन विचाएकों नै इस विषय पर चिन्तन कर कहा है-- जैसे अनैक कुमिक क्ियायैं अदुष्ट फछ की कल्पना द्वारा यज्ञ की उपकाएक छौती हैं तथयैव वर्ण मी कुमश अतुमत हौकर संस्कार कल्पना ढारा अर्थ प्रतीति के जनक छौत हैं यूघा महा गया है पुर्वे- वृणि- संस्कार -सहितौइन्त्यौ वर्ण प्रत्मायक टू. प्रभाकर मतावछम्बी अधमैबौघ स्थल मै दौ सस्काए मानते हैं-- (१) स्मति हैतुक (२) उर्थी प्रतीति हैतुक । मीमासिक कुमौपलजषित समुदित वर्ण की ही पद तथा कम सै समुदित पदों कौ वाक्य मानते हैँ । इनके मत मैं शब्द सादा तू इन्द्रिय-सम्बन्ध-वैथ होने तथा संख्या वा आश्रय होते सै इव्य है | नेयायिक पद माव कौ प्राप्त समुदित वर्ण कौ ही अर बौघक मान हैं । वाक्यरथूष खतु वर्ण श्रुच्चरत्सु प्रतिवर्ण तावच्छूवण मवति । छत वर्ण मैकमनि्क बा पदमावैन प्रतिसंघ । प्रतिसन्वाय पद व्यवस्यतति। ( वाक्य मैं स्थित वर्ण के उच्चाशित छोौने पर प्रति वर्णा उनका श्रवण छौता है इस प्रकार सुने गये स्क अथवा अक वर्ण समुदित छौकर पद रूपता की प्राप्त हौतैह ।) इस विचार को अन्य न्याय ग्रम्थौ मैं अधिक स्पष्ट किया गया है -- तर्हि प्रा तिपदिकम कुमवदवर्णा सहतलिरशिति बर्म कानों बगल लिए फालनत तकनशेक (लक अप रियो लिपक साकार सलवा सग बमलेत सकते संकाल पगगवं श्लौक वा० ३६६ (टू ठैद दि गप्द्धर (९.रण) ) शाबरमाष्य १1१1१ न्याप्सु०्मा० ३1२1२ न्या० छी ० प०६७१ छू छ




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