भारतीय दर्शन का इतिहास भाग - ३ | Bharatiy Darshan Ka Itihas Bhag 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.26 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ एम्. एन. दासगुप्त - Dr. M. N. Dasgupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मास्कराचाय का सम्प्रदाय ] [ हे माघवाचाय अपने शकर विजय ग्र थ मे शकराचाय श्रौर भास्कर भट्ट की मेंट का उल्लेख करते हैं कितु यह कितना विश्वसनीय है यह कहना वठिन है । मास्कराचाय ने धकर मत का ख़ण्डन क्या श्ौर उदयनाचाय ने भास्कर का उल्लेस विया है इससे यह निश्चित है कि मास्क राचाय श्राठवी भौर दसवी शताब्दी के बीच रहे हाग । पड़ित विष्येश्वरी प्रसाद महाराष्ट्र में नासिक के पास डा० भाऊकदासजी द्वारा पाए हुए ताय्र पत्र के प्राधार पर कहते हैं कि शाडित्य गाम में उत्पन्न कवि चक्रवर्ती निविक्रम के पु वोई भास्कर भट्ट थे जि हें विद्यापत्ति की उपाधि मिली हुई थी भ्ौर वे शाडिल्य गोनात्पन्न मास्कराचाय के छठे पूवज थे जा एक ज्यातिपी श्रौर सिद्धा त शिरामशि वे रचयिता थे। वे ऐसा मानत हैं कि ज्येष्ठ विद्यापत्ति भाग्कर भट्ट बहा सूत्र के टीकाकार थे । . किम्तु उनका यह कथन साधक प्रमाण क॑ श्रमाव में स्वीकार नही क्या जा सकता । दाना के नाम मे समानता हाने के अलावा कोई ऐसा निदिचत प्रमाण नहीं मिलता जा यह सिद्ध कर सके कि इही विधापति भास्कर मट्ट ने ब्रद्ध सूभ्र को टीका लिखी है। जा कुछ हम समाव्य निश्चय क साथ यह कह सकते है वह इतना ही है कि भास्कराचाय का काल मध्य श्राठवी शादी श्रौर मध्य दसवी शताब्दी के बीच का है बहुत समव है कि उनका काल नवमी शताब्दी रहा हा क्याकि वे रामानुजाचाय से झनसित्र थे । भास्कर सार शद्ूर ब्रह्म सूत्र २१ १४ का भ्रथ स्पप्ट करते हुए शकरावाय श्रौर भास्कराचाय १ दाकर विजय ४८० । प० वि ध्येश्वरीप्रसाद को प्रस्तावना । हम सहकृत साहित्य में भ्रनेका भास्कर के नाम सुनते हैं जसेकि लोक भास्वर श्रा त मारकर हरिमास्कर मदत मास्कर मास्कर मिश्र मास्कर शास्त्री मास्कर दी क्षित भट्टमास्कर पढ़ित मास्कराचाय मट्ट भास्कर मिश्र न्रिकाड सदन लागाक्षी भास्कर शाडिल्य मास्कर वत्स मास्कर भास्कर देव मास्वर नर्सिह मार्करारण्य भास्करान दनाथ भास्वर सेन । वे भय लेखा के विपय मे बहुत कम उल्लेख करते हैं। उनका कथन हैकि शाडित्य मांगवत्त सप्रदाय के महानु ग्रथाकार हैं। दे पाशुपत शव कापालिव श्रीर काठक सिद्धाती तथा पचाध्यायी इन चार प्रकार के महेश्वरा का वरुन करते हैं। शास्त्र को उनका मुख्य ग्रय मानते हैं। वे पदाराप्रिका का मी उल्लेख करते है जिनसे वे श्धिकतर सहमत हैं ६
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