तपस्या | Tapasya
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.19 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर कितने दिनों तक भा ही पाए । चार हो दिनों में अस्पताल से फुसत मिल गयी । पर घर के काम-काज से तो इतनी जह्दी छड़ी मिल | सकती थी । अभिजित सभी कामों में हाथ बंटाता । विजन वाब भी हर काम के लिए उसे चुलाते वार-वार कहते बेटे अभिजित चुम्हारी मौसी तुम्हे बहुत मानती थी । फिर न जाने क्यों इस वात के साथ ही उनरक मांखें गीली हो जातीं । अभिजित भी घीरे से कहता मुझे मालूम है मौसाजी मालूम तो विजनविह्वारी को भी था पर वंदना की मृत्यु के वाद उन्हें इसका ज्यादा ही भाभास हो रहा था । इसलिए हर शाम वह अभिजित के आने की राह देखते । वंदना के प्यार का लेप मानों अभिजित पर अब भी लगा हुआ था इसीलिए अभिजित को देखते रहना भी ब्रिजन चावू को अच्छा लगता । उसके एक दिन भी न आने पर वह सनस्द को भेज देते । कहते देख तो बेटा तेरा अभि दा आज क्यों नहीं आया ? मन्दिरा कभी-कभार कहती न आने पर आप बुला क्यों भेजते है चावूजी ? आदमी को अपना भी तो कुछ काम रह सकता है । विजनविहारी संकुचित हो जाते । कहते नहीं-नहीं अपना काम हर्जा करके मैं उसे आने के लिए थोड़े ही कहता हूं । मौका मिले सुविधा होतो। मन्दिरा हंसकर वोलती बुला भेजना इसका सबूत नहीं है बावूजी मन्दिरा की हंसी देखकर विज नविहारी उदास हो जाते । सिफ़ महीने र पहले जिसकी मां गुजर गयी हो वह किसी वात पर हंस पढड़ंगी चिजनघिहारी को यह अजीव-सा लगता । विजनधिहारी के मन में एक और बात के लिए भी दुःख था । उनकी ऐसी धारणा थी कि मन्दिर के मन में अभिजित के लिए थोड़ी कमजोरी है । पर अब लगता था अभिजित का रोज-रोंज़ का आना मन्दिरा को पसन्द नहीं था । यह तो कमज़ार की निशानी नहीं 1 हालांकि यह कमजोरी अगर थी भी तो सिर्फ़ कमजोरो बनकर हो रह जाएगी यह वात भी पवकी थी क्योंकि अभधिजित विजन बावू से निम्न चर्ग का था । घादी की बात उठ ही नहीं सकती थी । फिर भा उन्हें लगता सू६£ धर धर थी था लड़का मन्दिरा को पसन्द है। उसका आना-जाना भा तपस्पा १७
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