आधुनिक पंजाबी कहानियां | Aadhunik Punjabi Kahaniyan

Aadhunik Punjabi Kahaniyan by अजीत कौर - Ajeet Kaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोट और मनुष्य द1 सवेरे की तरह दात किटकिटाने का मूल्य उसे पद्धह रुपये मासिक मिलता था-- भौर यह ट्यूशन सिंफ तीन महीने ने लिए थी । पद्धह् हिये वैतालिस । एक रज़ाई आखिर धन जाएगी सीतो की मा के लिए और सीतो के आपरेशन की फीस भी शायद निकल आए । भाच तक डावटर ने कहा था और सीतो के लिए एन पाव दूध । भागवती ने अपनी चारपाई पर लेटते हुए कहा अब जब ट्यशन के पैसे आए तो मुधे ऊन ला देना । मैं आपको एक स्वटर ही युन दू । इतनी ढड तीन कपडो मे ही काट रहे हो । ईश्वर न करे कह्टी काई हरज-मरज हो गई कि भागवती अपने बफ-जैसे विस्तर पर गुच्छा-मुच्छा बनी काप रही थी. और कपकषी उसकी आवाज़ मे भी थी । मुझे स्थेटर नही चाहिए मैं आज एव कांट से आया हू । कहा है कोट ? मुझे तो आपने दिखाया ही नही 1 और ले कसे लिया ? अभी तो न तनखाह मिली है न ट्यूशन वे पसे 1 सीतो को फिर खासी ज़ोर से उठ गई थी। भागवती उसवी घारपाई पर उसकी छाती सलने चल। गई । मास्टर ईशर दास ने कोट अपने घर के किसी प्राणी को नही दिखाया था । अगर बह काट पहन कर घर आ जाता तो भागवती और सीतो के सिवा उसे और वोई शायद पहचानता भी नहीं । तीनों छोटे बच्चा को जवसे बुछ होश आया था तबसे ही उन्होंने उसके पास वोट कभी नहीं देखा था। अपने विवाह पर उसने एक गरम कोट सिलवाया था जो वितने ही बरस चला था। पर जवस देश आजाद हुआ था और वह लोग पाकिस्तान से इधर आए थे वह गरम कोट पाविस्ताम में ही रह गया था--और उसके बाद नया कोट नहीं बन सका था---और आज वह कोट ले आया था--पर उसने यह वोट अपनी पत्नी को नहीं दिखाया था । जो कोट पादिस्तान मे रह गया था उसके विवाह वा कोट उस मे बायी ओर वे कालर के पास शौवीन शहरी दर्ज न फत लगाने के लिए जगह बनाई थी । विवाह के शुछ दिना वे याद हो उसकी पत्नी से उसम एम फूप सगा बर उसमें पूछा या-- इस पूल वा नाम जानते हो उसने जानते हुए




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