सिंधु सीमान्त | Sindhu Seemant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ / शभ्रदांत-प्रतलांत कया है ? भ्रौर उसी माध्यम में दो बिन्दुपों या दो क्षणों के बीच का व्यवघान ? “क्या इन दोनों स्थानों पर माध्यम के प्रवाह की गति बदल कर उस व्यवधान को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता ? किसी अन्य श्रपेक्षाकृत स्थिर-माध्यम पर निविष्ट दृष्टि ही तो उसकी प्रतीति देसकती है । श्रौर वह भी कितनी भ्रमपूर्ण हो सकती है ? घटनाश्रों के मान से ही यदि समय को जाँचने का रिवाज श्राज भी चला श्रा रहा है तो श्रभी कल ही की तो बात है कि हिरोशिमा श्रोर नागासाकी पर श्रण का पेट फोड़कर विनाश का दँत्य श्रपनी भूख मिटाने के लिए श्रवतरित हुमा था ! महाभारत के महासंहार का उपसंहार संहार के देवता के सिवा श्रौर कर ही कोन सकता था ? --श्रौर एक श्रोर जब विजय की दुन्दभी बज रही थी, दूसरी 'श्रौर देव में प्रघरलाल, टीकमचन्द जेसे प्रात: स्मरणीय महात्माशओ्ं को प्राणदण्ड दिया जा रहा था । यही क्या इस सृष्टि में संतुलन की क्रिया है ? जितना एक श्रोर हुष॑ है, उतना ही दूसरी श्रोर विमष होगा, एक पलड़े में जितनी राझि श्रानन्द की होगी दूसरे पलड़े में उतना ही दुःख लादे बिना निस्तार नहीं है, तो फिर उसके स्वयं के श्रानन्द-श्रवसाद का क्या लेखा-जोखा है, श्रौर क्या उसका महत्व है ? '... लगातार शायद दो या तीन लगभग पुरी-पुरी रातें विप्लव-दल द्वारा उसके तीन ददाक लम्बे जीवन का पुरा चित्र खींचने में बीती थीं । कितना श्रालोड़न- विलोड़न हुझा है उसके स्मृति-कोष का ? विचार-गृह में ही नहीं, कैद की उस सीलनभरी बदबुदार श्रंघेरी कोठरी में भी विगत की कंसी भयानक विभीपिकाएं उसे घेरे रही हैं ? सारा जीवन वह मानों एक बार श्रौर जीने के लिए बाध्य किया गया हो । किन्तु तब भी श्रपने से बाहर निकल कर श्रपने ही जीवन को तटस्थ भाव से फिर जीने का श्रवसर पाना भी क्या एक गम्भीर रहस्य का प्रिय-प्रंग नहीं है ? विचार की वह पहली रात ही--




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