मध्यकालीन भारत | Madhya Kalin Bharat (1949)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मध्य कालीन मारत शासन की विशेषताएँ घ्ररख-इतिद्ास-लेखकों के ग्रंथों श्यौर विवरणों से पता चलता है कि उनके श्राधिपत्य से पहले सिध में जो हिन्दू राजा शासन कर रहे थे, थे केसे थे ध्लौर जब उनका -ध्र्थात्‌ श्ररबों का--शासन स्थापित दो गया तो उससे सिंघ की जनता के जीघन में क्या श्र वैसा परिघतन इु्आा । घिजितों के प्रति ध्रखों का व्यवहार मिश्ित ढंग का था-उसमें क्ररता भी थी श्यौर नरमी भी। ज्ञो नगर ध्रवों के घ्याधिपत्य के घिरुद्ध सिर उठाने का साहस करते थे, उन्हें निद्यता के साथ कुचल दिया जाता था। लेकिन सौदागरों श्योर कारोगरों को, साधारणतया, ध्पपने दमन का शिकार वे नहीं । बनाते थे शोर उनके साथ रियायन से पेश ध्याते थे । साधारण जनता को भी, पक बार जब घट्ठ नज़राना देना स्वोकार कर लेती थी, वे सभी सुधिधाएँ लौटा दो जाती थीं जिनका घट पढ़ले से उपयोग करती छा रही थी । झरतों का प्रभुत्व स्वीकार करने के वाद जनता को नागरिक घ्याजादी का उपयेग करने का श्धिकार मित्त जाता था । इसमें ध्रपने घम का स्वतंत्र शोर निर्वाध पालन भी सम्मिलित था । ब््रब शासक स्वभावतः कुछ दायित्व-ह्ीन, दम्भी शोर यहाँ की स्थिति से झनभिक्ष थे | फलतः शासन का झधिकांश भार उन्होंने देशी 'झधिकारियों के हाथों में छोड़ दिया था । भूमि के काफी बड़े नासा डरा था पूरी तरह से नहदीं देख और समक सके । उनका मित्र-माव यहाँ तक बढ़ गया था कि एक बार वे कन्नौज के गुर्जर-प्रतिह्वारों के विरुद्ध--जिन्होंने नवीं शती में रब ाक्रमणों से इट कर लोड लिया था--इस्लामिक शक्तियों की पांत में जा खड़े हुए थे | सोदागर सुल्लेमान (न्नगमग ८१० ईंत्ी) 'और मसचझदी ( लगभग- ६५६ इसी ) ऐसे अरब-ल्लेवकों ने भी इसे स्वीकार किया है । ( देखिए, इल्लियट और डासन लिखित 'इिस्ट्री आफ इश्डिया एज टोल्ड बाई इटस अऔओन ड्स्टोरियन्स”, खंड १ ( शब्६७ ) पृष्ठ ४; २१ रादि--और 'अ्आर० सी ० मलूमदार जिखित गुजंर-प्रतिद्वार शीर्षक लेख जो जनंल आफ दि डिपा्टमेन्ट आफ लेटे (कलकत्ता विश्व विद्यालय खंड दूस में छुपा है;-- एच०सी ०राय छत डाइने- स्टिक हिस्ट्री आफ नारद इ्डिया, खंड १, परिच्छेद॒ १--आर०सी० मजूमदार कृत 'दिं अरब इनवेजन आफ इन्डिया |” रा न




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