वेद परिचय भाग - ३ | Ved Parichay Bhag-3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राणका महत्त्व । [२५ करूंगा । प्राणायामसे उसको प्रसन्न करूंगा भार वद्ीसूत प्राणसे श्पनी ईच्छानुरूप अपने दारीरमें काय करूंगा ।” यह भावना मनमें धारण करके. सपनी प्राणकी दाक्तिका चिन्तन उसकी दाकि चढानेके [छिये करना चाहिये । यद्द प्राण जैसा दरीरमें है वैसा वाहिर भी है । इस विपयमें दितीय मंत्र देखनेयोग्य है । इस द्विठीय मैत्रसें केवरू गरजनेदाले मेघोंका नाम “क्रन्द' है, चढी गर्जना लौर विद्युत्पात जिनसे होता है, उन मेघोंका नाम ' स्तन- यित्नु ' है, जिनसे बिजछी बहुत चमकती है, उनको * चिद्युत्तू ' कहते हैं छोर चूष्टि करनेवाछे मेघोंका नाम है * घपत्‌ ।” ये सब मेघ अन्तरिक्षमें झाणवायुकों 'घारण करते हैं घर चृष्टिद्वारा वद प्राण भूमंडढपर शाता है सौर चृक्षबनस्पतियोंसें संचारित दोता है। चृवीय मेत्रसें कददा है कि, छन्तरिक्ष-स्थानका प्राण वृष्टिद्वारा औौपति-वनस्पतियोंसें भाकर चनस्पतियों- का विस्तार करता है। प्राणकी यह शक्ति प्रत्यक्ष देखनेयोग्य है । चष्टिद्वारा प्राप्त द्वोनेवाले प्राणसे न केवल बुक्षवनस्पतियाँ प्रफुछित होतीं हैं, परंतु अन्य जीवजंतु छीर प्राणी भी बडे दर्पित होते हैं । मनुष्य सी इसका स्वयं लजुभव करते हैं । यदद चुवीय मंत्रका कथन है । लस्तरिक्षस्थ प्राणका कार्य इस प्रकार ४-५७ मेत्रमें पाठक देखें मोर जगत्‌- में इस प्राणका मददचष्च कितना है, इसका अनुभव करें । पदले मंत्रसें प्राणफा सामान्य स्वरूप वर्णन किया है, उसको बन्तरिक्षस्थानीय एक विभ्ूठि यहाँ घता दी है । भव इसीकी वेयक्तिक विभूति ७-८ मंत्रसें बताई है । आणायाम-वचिधि । इचासके साथ प्राणका घन्दुर गमन होता है शोर उच्छवासके साथ चादर माना होता है । आणायामके पूरक भौर रेचकका वोघ ” आायत्‌ , परायत्‌ ' इन दो दब्दोंसे द्ोता है । स्थिर * तिछ्ठतू * रदनेवाऊे प्राणसे - झुमकका वोघ होता है । शोर वाद्य कुंमकका ज्ञान * आसोन * पदसे होता दे।. (१) पूरक, (२) कंभक, (रे) रेचक, _ भौर ... (४) वाद्य कुभक वे प्राणायामके चार भाग हैं । ये चारों मिछकर परिपूर्ण प्राणा- यामें होता दे । इनका चेन इस मंत्रमें ” (१) आयद्‌, (९) तिछ्ठ॒च्‌ , (३) परायत्तू, (४) झासलीन ” इन चार दाब्द्रोंसे हुआ है । जो भंदर




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