वेद परिचय भाग - ३ | Ved Parichay Bhag-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.34 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राणका महत्त्व । [२५
करूंगा । प्राणायामसे उसको प्रसन्न करूंगा भार वद्ीसूत प्राणसे श्पनी
ईच्छानुरूप अपने दारीरमें काय करूंगा ।” यह भावना मनमें धारण करके.
सपनी प्राणकी दाक्तिका चिन्तन उसकी दाकि चढानेके [छिये करना चाहिये ।
यद्द प्राण जैसा दरीरमें है वैसा वाहिर भी है । इस विपयमें दितीय मंत्र
देखनेयोग्य है । इस द्विठीय मैत्रसें केवरू गरजनेदाले मेघोंका नाम “क्रन्द'
है, चढी गर्जना लौर विद्युत्पात जिनसे होता है, उन मेघोंका नाम ' स्तन-
यित्नु ' है, जिनसे बिजछी बहुत चमकती है, उनको * चिद्युत्तू ' कहते हैं
छोर चूष्टि करनेवाछे मेघोंका नाम है * घपत् ।” ये सब मेघ अन्तरिक्षमें
झाणवायुकों 'घारण करते हैं घर चृष्टिद्वारा वद प्राण भूमंडढपर शाता है
सौर चृक्षबनस्पतियोंसें संचारित दोता है। चृवीय मेत्रसें कददा है कि,
छन्तरिक्ष-स्थानका प्राण वृष्टिद्वारा औौपति-वनस्पतियोंसें भाकर चनस्पतियों-
का विस्तार करता है। प्राणकी यह शक्ति प्रत्यक्ष देखनेयोग्य है ।
चष्टिद्वारा प्राप्त द्वोनेवाले प्राणसे न केवल बुक्षवनस्पतियाँ प्रफुछित
होतीं हैं, परंतु अन्य जीवजंतु छीर प्राणी भी बडे दर्पित होते हैं । मनुष्य
सी इसका स्वयं लजुभव करते हैं । यदद चुवीय मंत्रका कथन है ।
लस्तरिक्षस्थ प्राणका कार्य इस प्रकार ४-५७ मेत्रमें पाठक देखें मोर जगत्-
में इस प्राणका मददचष्च कितना है, इसका अनुभव करें । पदले मंत्रसें प्राणफा
सामान्य स्वरूप वर्णन किया है, उसको बन्तरिक्षस्थानीय एक विभ्ूठि
यहाँ घता दी है । भव इसीकी वेयक्तिक विभूति ७-८ मंत्रसें बताई है ।
आणायाम-वचिधि ।
इचासके साथ प्राणका घन्दुर गमन होता है शोर उच्छवासके साथ
चादर माना होता है । आणायामके पूरक भौर रेचकका वोघ ” आायत् ,
परायत् ' इन दो दब्दोंसे द्ोता है । स्थिर * तिछ्ठतू * रदनेवाऊे प्राणसे -
झुमकका वोघ होता है । शोर वाद्य कुंमकका ज्ञान * आसोन * पदसे
होता दे।. (१) पूरक, (२) कंभक, (रे) रेचक, _ भौर ... (४) वाद्य
कुभक वे प्राणायामके चार भाग हैं । ये चारों मिछकर परिपूर्ण प्राणा-
यामें होता दे । इनका चेन इस मंत्रमें ” (१) आयद्, (९) तिछ्ठ॒च् ,
(३) परायत्तू, (४) झासलीन ” इन चार दाब्द्रोंसे हुआ है । जो भंदर
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