हिंदी नाट्य साहित्य | Hindi - Natya - Sahitya

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Hindi - Natya - Sahitya by ब्रजरत्न दस - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कत-नाव्य-साहित्य की उत्पत्ति दुआ । ये बंगाल की यात्रा या रासलीला के समान थे । इसके-बाद..की ऐसी रचनाएँ अप्राप्त हे और कभी कभी कुछ अंश रोसन-संयहों में मिल जाते है। श्रीस से रोम जाने पर ऐसी जो दुःखांत या सुखांत रचनाएँ हुई उन्हीं का प्रभाव वाद के यूरोपीय नाव्य-र्वना पर स्पष्टतः पाया जाता है। रोम की दुखांत रचनाओं में भी केवल सेनेका की कुछ -कृतियोँ सिलती हैं जो केवल पढ़ने के योग्य हैं तथा खेल के लिए उपयुक्त नद्दी है। प्लौटस और टेरेस सुखांत रचनाओं के प्रधान निर्माता थे और ये पूर्वेसा दृतीय शताड्दि में हुए थे । इसके बाद यहाँ भी इस प्रकार की रचना तथा खेल का अधःपतन हुआ और नाव्यकला का -कार्निवल के चाल के खेल के आगे अंत हो गया । इस समय इंसाई मत फैला और इसके पादरीगण तथा अनुयायी नास्य-कला के परम शत्रु हो गए और कई शताब्दियों तक यूरोप में इसका नाम भी नहीं बच गया था । मध्यकाल में आकर जब पोपों का पूणणं झाधिकार स्थापित हो गया तब प्राय डेढ़ सहस्र वर्षों के बाद धार्मिक खेलों का पुनः बीजा- रोपण किया गया था । कु विचार करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि श्रीस में पूर्वेंसा एक शताब्दि के बाद नाव्य-कला का एक दम हास हो गया था और यूरोप मे न्यत्र सोलहवीं शताब्दि ईसवी में पुनः उसका उत्थान आरंभ हुआ था । भारत पर श्रीकों का प्रथम आक्रमण सिकंदर द्वारा पूर्वेसा सन्‌ र२७-६ में हुआ था और उसका कुल समय यहाँ लड़ते मिड़ते बीत गया था । तस्कालीन श्रीक सभ्यता का उस समय भारतीय सभ्यता पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ सका था जिन्हें भारतीय यवन या म्लेच्छ मानते रहे । सिकंदर के बाद भारत में श्रीको का जो कुछ प्रभुव्व शेष रहद गया था वह उसके लौट जाने के पॉच वर्ष के भोतर हो बिल्कुल मिट गया । इसके अनंतर पूर्वेसा सन्‌ १४५ से मिनेडर अथात्‌ सिलिद की चढ़ाई हुई और उसे भी दो वर्ष बाद यहों से लौट जाना पड़ा । मौयंकाल में मिश्र ग्रीस ादि राज्यों से भारतीय नरेशों का संबंध अवश्य था पर इतने ही आवागमन तथा संपर्क को लेकर यूरोपियन विद्वान भारतीय नास्यकला पर श्रीक-प्रभाव स्थापित करने की चेष्टा करते रहे दें । मिनेडर के समय मे श्रीस तथा रोम तक में नाव्य-रचना व्था भिनय का हास हो चुका था जैसा कि ऊपर दिखलाया जा चुका है घर यदि भास का समय पूर्वेसा प्रथस शताब्दि सान लिया जाय तब भीक-प्रभाव का कथन कपोल-कल्पना मात्र रह जाता है। भास के




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