राजस्थान में हिंदी पत्रकारिता | Rajasthan Me Hindi Patrkarita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ठिका हे गपित कर दी जाती थी । सन्‌ 1828 में कर्नेल जेम्स टाड ने लग्दन की रायल एशियाटिक सोसाइटी को मुगल दरबार के सैकडो हस्तलिखित समाचार पतन भेजे परे । एच० बेवैरिज के प्रनुसार इन समाचार पत्रों का श्राकार 8 2९ बैड होता था प्रौर थे विभिन्न हस्तलेखो में लिखित होते थे । इन पत्रों मे बादशाह की धामिक यात्रापो शिकार पर जाने पदोध्नतिया देने तथा इनाम-इकराम बाटने श्रादि के वर्णन हैं । इस तरह की श्रलबार नवीसी ईस्ट इन्डिया कम्पनी का वचंस्व स्थापित होने तक किसी न किसी रूप में विद्यमान थी 1 मुद्रण कला का श्रागमन श्रच तक यह मान्यता रही है कि भारत मे श्राघुनिक मुद्रण कला का झरागमन सन 1550 में उन ईसाई घ्म प्रचारकों द्वारा हुमा जिन्होंने गोवा से पहली बार रोमन भ्रक्षरी झौर पुनेगाली मापा में धामिक साहित्य का श्रकाशन किया । यही से सच 1655 में देवनागरी लिपि मे मराठी की प्रथम पुस्तक सेंट पीटरचे चरित्र प्रकाशित की गई । भीमजी पारेख नाम के सज्जन वे पहले भारतीय बताये जाते हैं जिन्होंने बम्बई मे 1674 मे देवनागरी मुद्रणालय खोल कर हिन्दू धरमें-ग्रथो के प्रकाशन की दिशा में पहल की । ै किन्तु बाबू कारतिक प्रसाद तथा बादू श्याम सुन्दर दास की सहायता से श्री राधाकृष्णदास लिखित हिन्दी भाषा के सामयिक पत्नी का इतिहास नामक पुस्तक में श्री जोगेख्रनाय धोप के 1870 में लिखें गये एक लेख का हवाला दिया गया है जिसमें यह उल्लेख किया गया है. कि हैस्टि्न के शासन-काल में बनारस में एक मेजर के द्वारा खुदाई के दौरान ऐसा प्रेस मिला है जिसमे कम्पोज किया हुआ टाइप मुद्रण के लिए तैयार रखा था । लेख मे कहा गया है कि इस प्रकार पे मुदण यन्त्र बे भ्रस्तित्व की काल-निर्धारण करने की पुरी चेप्टा की गई वंयोकि प्रकटतः मह भाधुनिक मुद्रण यन्त्र की मांति का नहीं था । ऐसा श्रमुमान क्रिया जाता है कि यह प्रेस जिस स्थिति में खुदाई के दौरान पाया गया था उस स्थिति में कम से कम एक हजार वर्ष से पूर्व गढा था । लेख का मूल घर श इस प्रकार है इन कक कब छिएपतं 8 फ3घ 0 फा101108 ८85८5 इंटर चछ 10 8 फ8901 शणणे फ्राए+धट हुए ० 85 11८०४ छिए फ्पाण्पणट एस्टाक दछपुण्णज कश3 उटा 0 छिए 1०. हधट्लाघाए एट फाण्ॉट एदा00 2 भाषाएं उप 8ण 1. जेल भाफ रायल एशियाटिक सोसाइटी 190 - पृ० 1121 2. वेरटलाल भोका हिन्दी समाचार पत्र निर्देशिशा पृ० 2




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