गुलिस्ताँ | Gulistan

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Gulistan by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पचला ध्रध्याय । धर हि ५७७ हाथ आभार कोपों में इधर-उधर घूम कर चारों भ्रोर देख रहो हैं। दादशाद ने व्योतिषो भ्रौर नजूसियों से इस स्वप्न का फल पूछा पर कोई कुछ भी न वता सका । तव एक फूकीर ने सलास कर के कद्ा -उसका राज्य दूसरे लोग सोग रहे हैं -इसो से वच चारों श्रोर देख रददा है । ऐसे. बदतर नासवर लोग क्ञमोन में गाए दिये गये हैं जिन्होंने संसार में आकर कोई ऐसा काम नहीं किया जिस से छथ्वी पर उनका नाम रहे । लेकिन नीशेरवाँ जेसे सछापुरुष को सरे यद्यपि एक ज्ञसाना वोत गया कृब्र सें रक्खो डुई उसकी लाश गस कर मिट्टी में मिल गई. उसकी एक चडडो का भी पता नहीं चलता तथापि उसका पवित्र नास परोपकार को वज्च्च से अवतक संसार में जिन्दा है। इसलिए भाइयों जब तक नियो नेकी करो और अपनों ज़िन्दगो से फ़ायदा उठाओ अ्रर्घातू झ्मुक शादमी दुनिया में नददीं रदा इस आवाज़ के श्राने के पदले नेको कर जाओ । शिक्षा-इस किस्पे से कमें परोपकार को शिक्षा सिलतो ड्ै। उदारता सब्ननता धर्मनिछा भ्रादि सद्ुण इस परोप- कार के झन्तर्गत हैं। प्ररोपकार हो सनुप्य का परस धर्म है। परोपकार से हो जगत्‌ मनुष्य को सरने के बाद भी याद किया कश्ता है। इस. दुनिया में एिसि-एऐसे राजा वादशाद शर शासक हो मये हैं जिन को कक से पी कॉपती थो जिन्होंने संसार को अपनों छोटो उँ गलो पर नचा मारा था




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